वैजयन्त: Difference between revisions
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Revision as of 15:13, 13 May 2020
(1) जम्बूद्वीप का एक द्वार । यह आठ योजन ऊँचा, चार योजन चौड़ा, नाना रत्नों की किरणों से अनुरंजित और वज्रमय दैदीप्यमान किवाड़ों से युक्त है । हरिवंशपुराण 5.390-391
(2) विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी का छठा नगर । हरिवंशपुराण 22.86
(3) विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी का दसवाँ नगर । महापुराण 19.50 53, हरिवंशपुराण 22.94
(4) दक्षिण-समुद्र का तटवर्ती एक महाद्वार । भरतेश ने इस द्वार के निकट अपनी सेना ठहराई थी । इस क्षेत्र का स्वामी वरतनु देव था । महापुराण 29.103, हरिवंशपुराण 11.13
(5) चक्रवर्ती भरतेश के एक महल का नाम । महापुराण 37.147
(6) पाँच अनुत्तर विमानों में एक विमान । महापुराण 51.15 पद्मपुराण 105. 170-171, हरिवंशपुराण 6.65
(7) समुद्र का एक गोपुर लक्ष्मण ने यहाँ वरतनु देव को पराजित करके उससे कटक, केयूर, चुड़ामणिहार और कटिसूत्र भेट में प्रान्त किये थे । महापुराण 68.651-652
(8) भरतक्षेत्र का एक नगर । रामपुरी से चलकर राम इसी नगर के समीप ठहरे थे । पद्मपुराण 36. 9-11
(9) जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेह क्षेत्र में गन्धमालिनी देश के वीतशोक नगर का राजा । इसकी रानी सर्वश्री तथा संजयन्त और जयन्त पुत्र थे । भोगों से विरक्त होने पर इतने संजयन्त के पुत्र वैजयन्त को राज्य देकर पिता के साथ स्वयंभू मुनि से संयम धारण कर लिया था । यह कषायों का क्षय करके अन्त में केवली हुआ । महापुराण 59.109-113, हरिवंशपुराण 27.5-8
(10) जम्बूद्वीप-विदेहक्षेत्र के गन्धमालिनी देश में वीतशोकपुर के स्वामी का प्रपौत्र और संजयन्त का पुत्र । महापुराण 59.109-112
(11) जम्बूद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में स्थित पुष्पकलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी के राजा वज्रसेन और रानी श्रीकान्ता का पुत्र । महापुराण 11.8-10
(12) समवसरण-भूमि के तीसरे कोट के दक्षिण द्वार का प्रथम नाम । हरिवंशपुराण 57. 58