भावपाहुड गाथा 29: Difference between revisions
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विकलत्रयों के असी एवं साठ अर चालीस भव ।<br> | |||
चौबीस भव पंचेन्द्रियों अन्तरमुहूरत छुद्रभव ।।२९।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> | <p><b> अर्थ - </b> इस अन्तर्मुहूर्त के भवों में दो इन्द्रिय के क्षुद्रभव अस्सी, तेइन्द्रिय के साठ, चौइन्द्रिय के चालीस और पंचेन्द्रिय के चौबीस, इसप्रकार हे आत्मन् ! तू क्षुद्रभव जान । </p> | ||
<p><b> भावार्थ -</b> | <p><b> भावार्थ -</b> क्षुद्रभव अन्य शास्त्रों में इसप्रकार गिने हैं । पृथ्वी, अप, तेज, वायु और साधारण निगोद के सूक्ष्म बादर से दस और सप्रतिष्ठित वनस्पति एक, इसप्रकार ग्यारह स्थानों के भव तो एक-एक के छह हजार बार, उसके छयासठ हजार एक सौ बत्तीस हुए और इस गाथा में कहे वे भव दो इन्द्रिय आदि के दो सौ चार, ऐसे ६६३३६ एक अन्तर्मुहूर्त में क्षुद्रभव कहे हैं ।।२९।।<br> | ||
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Latest revision as of 10:15, 14 December 2008
इस ही अन्तर्मुहूर्त के जन्म-मरण में क्षुद्रभव का विशेष कहते हैं -
वियलिंदए असीदी सट्ठी चालीसमेव जाणेह ।
पंचिंदिय चउवीसं खुद्दभवंतोुहुत्तस्स ।।२९।।
विकलेंद्रियाणामशीतिं षष्टिं चत्वारिंशतमेव जानीहि ।
पंचेन्द्रियाणां चतुर्विंशतिं क्षुद्रभवान् अन्तर्मुहूर्तस्य ।।२९।।
विकलत्रयों के असी एवं साठ अर चालीस भव ।
चौबीस भव पंचेन्द्रियों अन्तरमुहूरत छुद्रभव ।।२९।।
अर्थ - इस अन्तर्मुहूर्त के भवों में दो इन्द्रिय के क्षुद्रभव अस्सी, तेइन्द्रिय के साठ, चौइन्द्रिय के चालीस और पंचेन्द्रिय के चौबीस, इसप्रकार हे आत्मन् ! तू क्षुद्रभव जान ।
भावार्थ - क्षुद्रभव अन्य शास्त्रों में इसप्रकार गिने हैं । पृथ्वी, अप, तेज, वायु और साधारण निगोद के सूक्ष्म बादर से दस और सप्रतिष्ठित वनस्पति एक, इसप्रकार ग्यारह स्थानों के भव तो एक-एक के छह हजार बार, उसके छयासठ हजार एक सौ बत्तीस हुए और इस गाथा में कहे वे भव दो इन्द्रिय आदि के दो सौ चार, ऐसे ६६३३६ एक अन्तर्मुहूर्त में क्षुद्रभव कहे हैं ।।२९।।