भावपाहुड गाथा 42: Difference between revisions
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यह देह तो बस हडि्डयों श्रोणित बसा अर माँस का ।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> | <p><b> अर्थ - </b> हे मुने ! तू देहरूप घट को इसप्रकार विचार, कैसा है देहघट ? मांस, हाड, शुक्र (वीर्य), श्रोणित (रुधिर), पित्त (उष्ण विकार) और अंत्र (आंतड़िया) आदि द्वारा तत्काल मृतक की तरह दुर्गन्ध है तथा खरिस (रुधिर से मिला अपक्वमल), वसा (मेद), पूय (खराब खून) और राध इन सब मलिन वस्तुओं से पूरा भरा है, इसप्रकार देहरूप घट का विचार करो । </p> | ||
<p><b> भावार्थ -</b> | <p><b> भावार्थ -</b> यह जीव तो पवित्र है, शुद्धज्ञानमयी है और देह इसप्रकार है, इसमें रहना अयोग्य है, ऐसा बताया है ।।४२।।<br> | ||
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Latest revision as of 10:25, 14 December 2008
आगे कहते हैं कि यह देह इसप्रकार है उसका विचार करो -
मंसटि्ठसुक्कसोणियपित्तंतसवत्तकुणिमदुग्गंधं।
खरिसवसापूय १खिब्भिस भरियं चित्तेहि देहउडं ।।४२।।
मांसास्थिशुक्रश्रोणितपित्तांत्रस्रवत्कुणिमदुर्गंधं।
खरिसवसापूयकिल्विषभरितं चिन्तय देहकुट् ।।४२।।
यह देह तो बस हडि्डयों श्रोणित बसा अर माँस का ।
है पिण्ड इसमें तो सदा मल-मूत्र का आवास है ।।४२।।
अर्थ - हे मुने ! तू देहरूप घट को इसप्रकार विचार, कैसा है देहघट ? मांस, हाड, शुक्र (वीर्य), श्रोणित (रुधिर), पित्त (उष्ण विकार) और अंत्र (आंतड़िया) आदि द्वारा तत्काल मृतक की तरह दुर्गन्ध है तथा खरिस (रुधिर से मिला अपक्वमल), वसा (मेद), पूय (खराब खून) और राध इन सब मलिन वस्तुओं से पूरा भरा है, इसप्रकार देहरूप घट का विचार करो ।
भावार्थ - यह जीव तो पवित्र है, शुद्धज्ञानमयी है और देह इसप्रकार है, इसमें रहना अयोग्य है, ऐसा बताया है ।।४२।।