भावपाहुड गाथा 72: Difference between revisions
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न लभंते ते समाधिं बोधिं जिनशासने विमले ।।७२।।<br> | |||
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जिनभावना से रहित रागी संग से संयुक्त जो ।<br> | |||
पर | निर्ग्रन्थ हों पर बोधि और समाधि को पाते नहीं ।।७२।।<br> | ||
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<p><b> अर्थ - </b> | <p><b> अर्थ - </b> जो मुनि राग अर्थात् अभ्यन्तर परद्रव्य से प्रीति, वही हुआ संग अर्थात् परिग्रह उससे युक्त है और जिनभावना अर्थात् शुद्धस्वरूप की भावना से रहित हैं, वे द्रव्यनिर्ग्रन्थ हैं तो भी निर्मल जिनशासन में जो समाधि अर्थात् धर्मशुक्लध्यान और बोधि अर्थात् सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्रस्वरूप मोक्षमार्ग को नहीं पाते हैं । </p> | ||
<p><b> भावार्थ -</b> | <p><b> भावार्थ -</b> द्रव्यलिंगी अभ्यन्तर का राग नहीं छोड़ता है, परमात्मा का ध्यान नहीं करता है, तब कैसे मोक्षमार्ग पावे तथा कैसे समाधिमरण पावे? ।।७२।।<br> | ||
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Latest revision as of 10:49, 14 December 2008
आगे इसी अर्थ के समर्थनरूप कहते हैं कि द्रव्यलिंगी जैसी बोधि-समाधि जिनमार्ग में कही है वैसी नहीं पाता है -
जे रायसंगजुत्ता जिणभावणरहियदव्वणिग्गंथा ।
ण लहंति ते समाहिं बोहिं जिणसासणे विमले ।।७२।।
ये रागसंयुक्ता: जिनभावनारहितद्रव्यनिर्ग्रन्था: ।
न लभंते ते समाधिं बोधिं जिनशासने विमले ।।७२।।
जिनभावना से रहित रागी संग से संयुक्त जो ।
निर्ग्रन्थ हों पर बोधि और समाधि को पाते नहीं ।।७२।।
अर्थ - जो मुनि राग अर्थात् अभ्यन्तर परद्रव्य से प्रीति, वही हुआ संग अर्थात् परिग्रह उससे युक्त है और जिनभावना अर्थात् शुद्धस्वरूप की भावना से रहित हैं, वे द्रव्यनिर्ग्रन्थ हैं तो भी निर्मल जिनशासन में जो समाधि अर्थात् धर्मशुक्लध्यान और बोधि अर्थात् सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्रस्वरूप मोक्षमार्ग को नहीं पाते हैं ।
भावार्थ - द्रव्यलिंगी अभ्यन्तर का राग नहीं छोड़ता है, परमात्मा का ध्यान नहीं करता है, तब कैसे मोक्षमार्ग पावे तथा कैसे समाधिमरण पावे? ।।७२।।