भावपाहुड गाथा 87: Difference between revisions
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आगे | आगे इस कारण से आत्मा ही का श्रद्धान करो, प्रयत्नपूर्वक जानो, मोक्ष प्राप्त करो ऐसा उपदेश करते हैं -<br> | ||
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एएण कारणेण य तं अप्पा सद्दहेह तिविहेण ।<br> | |||
जेण य लहेह मोक्खं तं जाणिज्जह पयत्तेण ।।८७।।<br> | |||
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एतेन कारणेन च तं आत्मानं श्रद्धत्त त्रिविधेन ।<br> | |||
येन च लभध्वं मोक्षं तं जानीत प्रयत्नेन ।।८७।।<br> | |||
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आतमा | इसलिए पूरी शक्ति से निज आतमा को जानकर ।<br> | ||
श्रद्धा करो उसमें रमो नित मुक्तिपद पा जाओगे ।।८७।।<br> | |||
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<p><b> अर्थ - </b> | <p><b> अर्थ - </b> पहिले कहा था कि आत्मा का धर्म तो मोक्ष है, उसी कारण से कहते हैं कि हे भव्यजीवों ! तु उस आत्मा को प्रयत्नपूर्वक सबप्रकार के उद्यम करके यथार्थ जानो, उस आत्मा का श्रद्धान करो, प्रतीति करो, आचरण करो, मन-वचन-काय से ऐसे करो जिससे मोक्ष पावो । </p> | ||
<p><b> भावार्थ -</b> | <p><b> भावार्थ -</b> जिसको जानने और श्रद्धान करने से मोक्ष हो उसी को जानना और श्रद्धान करना मोक्षप्राप्ति कराता है, इसलिए आत्मा को जानने का कार्य सब प्रकार के उद्यमपूर्वक करना चाहिए इसी से मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए भव्यजीवों को यही उपदेश है ।।८७।।<br> | ||
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Latest revision as of 11:01, 14 December 2008
आगे इस कारण से आत्मा ही का श्रद्धान करो, प्रयत्नपूर्वक जानो, मोक्ष प्राप्त करो ऐसा उपदेश करते हैं -
एएण कारणेण य तं अप्पा सद्दहेह तिविहेण ।
जेण य लहेह मोक्खं तं जाणिज्जह पयत्तेण ।।८७।।
एतेन कारणेन च तं आत्मानं श्रद्धत्त त्रिविधेन ।
येन च लभध्वं मोक्षं तं जानीत प्रयत्नेन ।।८७।।
इसलिए पूरी शक्ति से निज आतमा को जानकर ।
श्रद्धा करो उसमें रमो नित मुक्तिपद पा जाओगे ।।८७।।
अर्थ - पहिले कहा था कि आत्मा का धर्म तो मोक्ष है, उसी कारण से कहते हैं कि हे भव्यजीवों ! तु उस आत्मा को प्रयत्नपूर्वक सबप्रकार के उद्यम करके यथार्थ जानो, उस आत्मा का श्रद्धान करो, प्रतीति करो, आचरण करो, मन-वचन-काय से ऐसे करो जिससे मोक्ष पावो ।
भावार्थ - जिसको जानने और श्रद्धान करने से मोक्ष हो उसी को जानना और श्रद्धान करना मोक्षप्राप्ति कराता है, इसलिए आत्मा को जानने का कार्य सब प्रकार के उद्यमपूर्वक करना चाहिए इसी से मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए भव्यजीवों को यही उपदेश है ।।८७।।