मोक्षपाहुड गाथा 7: Difference between revisions
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आगे भी यही उपदेश करते हैं -
आरुहवि अन्तरप्पा बहिरप्पा छंडिऊण तिविहेण ।
झाइज्जइ परमप्पा उवइट्ठं जिणवरिंदेहिं ।।७।।
आरुह्य अंतरात्मानं बहिरात्मानं त्यक्त्वा त्रिविधेन ।
ध्यायते परमात्मा उपदिष्टं जिनवरेन्द्रै: ।।७।।
जिनदेव का उपदेश यह बहिरातमापन त्यागकर ।
अरे ! अन्तर आतमा परमात्मा का ध्यान धर ।।७।।
अर्थ - बहिरात्मपन को मन वचन काय से छोड़कर अन्तरात्मा का आश्रय लेकर परमात्मा का ध्यान करो, यह जिनवरेन्द्र तीर्थंकर परमदेव ने उपदेश दिया है ।
भावार्थ - परमात्मा के ध्यान करने का उपदेश प्रधान करके कहा है इसी से मोक्ष पाते हैं ।।७।।