मोक्षपाहुड गाथा 23: Difference between revisions
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आगे कहते हैं कि स्वर्ग तो तप से (शुभरागरूपी तप द्वारा) सब ही प्राप्त करते हैं, परन्तु ध्यान के योग से स्वर्ग प्राप्त करते हैं वे उस ध्यान के योग से मोक्ष भी प्राप्त करते हैं -
सग्गं तवेण सव्वो वि पावए तहिं वि झाणजोएण ।
जो पावइ सो पावइ परलोए सासयं सोक्खं ।।२३।।
स्वर्गं तपसा सर्व: अपि प्राप्नोति किन्तु ध्यानयोगेन ।
य: प्राप्नोति स: प्राप्नोति परलोके शाश्वतं सौख्यम् ।।२३।।
शुभभाव-तप से स्वर्ग-सुख सब प्राप्त करते लोक में।
पाया सो पाया सहजसुख निजध्यान से परलोक में ।।२३।।
अर्थ - शुभरागरूपी तप द्वारा स्वर्ग तो सब ही पाते हैं तथापि जो ध्यान के योग से स्वर्ग पाते हैं, वे ही ध्यान के योग से परलोक में शाश्वत सुख को प्राप्त करते हैं ।
भावार्थ - कायक्लेशादिक तप तो सब ही मत के धारक करते हैं, वे तपस्वी मंदकषाय के निमित्त से सब ही स्वर्ग को प्राप्त करते हैं, परन्तु जो ध्यान के द्वारा स्वर्ग प्राप्त करते हैं, वे जिनमार्ग में कहे हुए ध्यान के योग से परलोक में जिसमें शाश्वत सुख है - ऐसे निर्वाण को प्राप्त करते हैं ।।२३।।