योगसार - चारित्र-अधिकार गाथा 368: Difference between revisions
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विहार करने की पात्रता -
भूत्वा निराकृतश्छेदश्चारित्राचरणोद्यत: ।
मुञ्चमानो निबन्धानि यतिर्विहरतां सदा ।।३६८।।
अन्वय :- छेद: निराकृत: भूत्वा चारित्राचरण-उद्यत: यति: निबन्धानि मुञ्चमान: सदा विहरताम् ।
सरलार्थ :- छेदोपस्थापक मुनिराज पहले तो दोष रहित होवें, स्वीकार किये हुए चारित्र के आचरण करने में उद्यमी, उत्साही एवं दत्तचित्त अर्थात् विशेषरूप से सावधान रहें और (सर्वथा उपादेयस्वरूप निज भगवान आत्मा में मग्न/लीन होते हुए) किसी भी परद्रव्य में रागादि भावों को न करते हुए निरंतर विहार करें ।