गार्हवत्याग्नि: Difference between revisions
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<p> | <p> अग्निकुमार देवों के इन्द्र के मुकुट से उत्पन्न त्रिविध अग्नियों में प्रथम अग्नि । इसकी स्थापना पृथक् कुण्ड में की जाती है । इसी से नैवेद्य बनाया जाता है । यह स्वयं पवित्र नहीं है न देवता रूप ही है, अर्हन्तों की पूजा के सम्बन्ध से यह पवित्र मानी गयी है । निर्वाण क्षेत्र के समान इसकी भी पूजा की जाती है । <span class="GRef"> महापुराण 40. 82-89 </span></p> | ||
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अग्निकुमार देवों के इन्द्र के मुकुट से उत्पन्न त्रिविध अग्नियों में प्रथम अग्नि । इसकी स्थापना पृथक् कुण्ड में की जाती है । इसी से नैवेद्य बनाया जाता है । यह स्वयं पवित्र नहीं है न देवता रूप ही है, अर्हन्तों की पूजा के सम्बन्ध से यह पवित्र मानी गयी है । निर्वाण क्षेत्र के समान इसकी भी पूजा की जाती है । महापुराण 40. 82-89