योगसार - चूलिका-अधिकार गाथा 535: Difference between revisions
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संसारच्छेद का स्वरूप -
(शालिनी)
स्कन्धच्छेदे पल्लवा: सन्ति भूयो
मूलच्छेदे शाखिनस्ते तथा नो । देशच्छेदे सन्ति भूयो विकारा मूलच्छेदे जन्मनस्ते तथा नो ।।५३६।।
अन्वय : - (यथा) शाखिन: स्कन्धच्छेदे पल्लवा: भूय: सन्ति; (किन्तु शाखिन:) मूलच्छेदे ते तथा नो (तथैव) जन्मन: देशच्छेदे विकारा: भूय: सन्ति; (किन्तु जन्मन:) मूलच्छेदे ते (विकारा:) तथा नो।
सरलार्थ :- जिसप्रकार वृक्ष के स्कन्ध भाग का छेद होने पर पत्ते फिर निकल आते हैं; किन्तु वृक्ष के मूल अर्थात् जड़ का छेद होनेपर वृक्ष में फिर से पत्ते नहीं आते; उसीप्रकार संसार का एकदेश नाश (अज्ञानी की मान्यतानुसार पाप का नाश) करने पर विकार फिर उत्पन्न हो जाते हैं; किन्तु संसार के मूलरूप मिथ्यात्व के सम्पूर्ण विनाश करने पर फिर से विकार उत्पन्न नहीं होते अर्थात् संसार का ही नाश हो जाता है ।