द्यानतरायजी: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
'''कविवर''' '''द्यानतरायजी''' :- सत्रहवीं शताब्दी के हिन्दी प्रमुख जैन कवियों में कविवर द्यानतराय प्रमुख थे । आपका जन्म वि. सं. १७३३ (सन् १९७६)में आगरा में हुआ । आपके पूर्वज लालपुर से आकर आगरा में निवास करने लगे थे । आपके पितामह का नाम वीरदास था जो अग्रवाल जाति के गोयल गोत्रीय थे । आपके पिता का नाम श्यामदास था । उस समय आगरा में पं.बनारसीदासजी का अच्छा प्रभाव था और परम्परागत आध्यात्मिक शैली प्रभावशील थीं । आपने पण्डित मानसिंहजी द्वारा संचालित धर्मशैली से भरपूर लाभ उठाया । आप पर पण्डित मानसिंहजी के अतिरिक्त पण्डित बिहारीदासजी के उपदेशों का भी प्रभाव था जिसके कारण आपकी जैनधर्म के प्रति अगाध श्रद्धा दृढ़ हुई । आपने अपना सारा जीवन अध्यात्म की सेवा में लगा दिया । आपकी | '''कविवर''' '''द्यानतरायजी''' :- सत्रहवीं शताब्दी के हिन्दी प्रमुख जैन कवियों में कविवर द्यानतराय प्रमुख थे । आपका जन्म वि. सं. १७३३ (सन् १९७६)में आगरा में हुआ । आपके पूर्वज लालपुर से आकर आगरा में निवास करने लगे थे । आपके पितामह का नाम वीरदास था जो अग्रवाल जाति के गोयल गोत्रीय थे । आपके पिता का नाम श्यामदास था । उस समय आगरा में पं.बनारसीदासजी का अच्छा प्रभाव था और परम्परागत आध्यात्मिक शैली प्रभावशील थीं । आपने पण्डित मानसिंहजी द्वारा संचालित धर्मशैली से भरपूर लाभ उठाया । आप पर पण्डित मानसिंहजी के अतिरिक्त पण्डित बिहारीदासजी के उपदेशों का भी प्रभाव था जिसके कारण आपकी जैनधर्म के प्रति अगाध श्रद्धा दृढ़ हुई । आपने अपना सारा जीवन अध्यात्म की सेवा में लगा दिया । आपकी रचनाओ में पूजा-पाठ, स्तोत्र तथा भजन प्रमुखता से हैं । आपके आध्यात्मिक भजन `द्यानत विलास' के नाम से संग्रहीत हैं । आपका निधन वि.सं. १७८५ (सन् १७२८ ई.) में हुआ । | ||
Latest revision as of 05:16, 11 February 2008
कविवर द्यानतरायजी :- सत्रहवीं शताब्दी के हिन्दी प्रमुख जैन कवियों में कविवर द्यानतराय प्रमुख थे । आपका जन्म वि. सं. १७३३ (सन् १९७६)में आगरा में हुआ । आपके पूर्वज लालपुर से आकर आगरा में निवास करने लगे थे । आपके पितामह का नाम वीरदास था जो अग्रवाल जाति के गोयल गोत्रीय थे । आपके पिता का नाम श्यामदास था । उस समय आगरा में पं.बनारसीदासजी का अच्छा प्रभाव था और परम्परागत आध्यात्मिक शैली प्रभावशील थीं । आपने पण्डित मानसिंहजी द्वारा संचालित धर्मशैली से भरपूर लाभ उठाया । आप पर पण्डित मानसिंहजी के अतिरिक्त पण्डित बिहारीदासजी के उपदेशों का भी प्रभाव था जिसके कारण आपकी जैनधर्म के प्रति अगाध श्रद्धा दृढ़ हुई । आपने अपना सारा जीवन अध्यात्म की सेवा में लगा दिया । आपकी रचनाओ में पूजा-पाठ, स्तोत्र तथा भजन प्रमुखता से हैं । आपके आध्यात्मिक भजन `द्यानत विलास' के नाम से संग्रहीत हैं । आपका निधन वि.सं. १७८५ (सन् १७२८ ई.) में हुआ ।