योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 63: Difference between revisions
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<p><b> अन्वय </b>:- गुणपर्ययवद् द्रव्यम् इति लक्षणयोगत: जीवेन सह निवेदिता: एते पञ्च अपि (अजीवा:) द्रव्याणि (सन्ति) । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- गुणपर्ययवद् द्रव्यम् इति लक्षणयोगत: जीवेन सह निवेदिता: एते पञ्च अपि (अजीवा:) द्रव्याणि (सन्ति) । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- जीव सहित ये पाँचों भी (अजीव द्रव्य) द्रव्य कहे गये हैं; क्योंकि ये सभी गुणपर्ययवद्द्रव्यं इस द्रव्य के लक्षण से सहित हैं । </p> | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- जीव सहित ये पाँचों भी (अजीव द्रव्य) द्रव्य कहे गये हैं; क्योंकि ये सभी गुणपर्ययवद्द्रव्यं इस द्रव्य के लक्षण से सहित हैं । </p> | ||
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छहों की द्रव्यसंज्ञा -
जीवेन सह पञ्चापि द्रव्याण्येते निवेदिता: ।
गुण-पर्ययवद्द्रव्यमिति लक्षण-योगत: ।।६३।।
अन्वय :- गुणपर्ययवद् द्रव्यम् इति लक्षणयोगत: जीवेन सह निवेदिता: एते पञ्च अपि (अजीवा:) द्रव्याणि (सन्ति) ।
सरलार्थ :- जीव सहित ये पाँचों भी (अजीव द्रव्य) द्रव्य कहे गये हैं; क्योंकि ये सभी गुणपर्ययवद्द्रव्यं इस द्रव्य के लक्षण से सहित हैं ।