योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 95: Difference between revisions
From जैनकोष
(New page: कर्मजनित देहादिक विभाव अचेतन हैं - <p class="SanskritGatha"> देह-संहति-संस्थान-गति-जात...) |
No edit summary |
||
(One intermediate revision by the same user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p class="Utthanika">गुणस्थान पुद्गल-निर्मित है -</p> | |||
<p class="SanskritGatha"> | |||
मिथ्यादृक् सासनो मिश्रोsसंयतो देशसंयत: ।<br> | |||
प्रमत्त इतरोsपूर्वस्तत्त्वज्ञैरनिवृत्तक: ।।९५।।<br> | |||
</p> | |||
<p class="SanskritGatha"> | <p class="SanskritGatha"> | ||
सूक्ष्म: शान्त: पर: क्षीणो योगी चेति त्रयोदश ।<br> | |||
गुणा: पौद्गलिका: प्रोक्ता: कर्मप्रकृतिनिर्मिता: ।।९६।।<br> | |||
</p> | </p> | ||
<p><b> अन्वय </b>:- | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- तत्त्वज्ञै: मिथ्यादृक्, सासन:, मिश्र:, असंयत:, देशसंयत:, प्रमत्त:, इतर:, अपूर्व:, अनिवृत्तक:, सूक्ष्म:, शान्त:, पर:क्षीण:, योगी च इति त्रयोदश: गुणा: पौद्गलिका: कर्मप्रकृतिनिर्मिता: प्रोक्ता: । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- तत्त्वज्ञानियों ने मिथ्यादृष्टि, सासादन, मिश्र, असंयतसम्यक्दृष्टि, देशविरत, प्रमत्तविरत, अप्रमत्तविरत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय, उपशांतमोह, क्षीणमोह, सयोगकेवली - इन तेरह गुणस्थानों को कर्मप्रकृतियों से निर्मित पौद्गलिक कहा है । </p> | ||
<p class="GathaLinks"> | <p class="GathaLinks"> | ||
[[योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 94 | पिछली गाथा]] | [[योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 94 | पिछली गाथा]] | ||
[[योगसार - अजीव-अधिकार गाथा | [[योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 97 | अगली गाथा]]</p> | ||
Latest revision as of 10:22, 15 May 2009
गुणस्थान पुद्गल-निर्मित है -
मिथ्यादृक् सासनो मिश्रोsसंयतो देशसंयत: ।
प्रमत्त इतरोsपूर्वस्तत्त्वज्ञैरनिवृत्तक: ।।९५।।
सूक्ष्म: शान्त: पर: क्षीणो योगी चेति त्रयोदश ।
गुणा: पौद्गलिका: प्रोक्ता: कर्मप्रकृतिनिर्मिता: ।।९६।।
अन्वय :- तत्त्वज्ञै: मिथ्यादृक्, सासन:, मिश्र:, असंयत:, देशसंयत:, प्रमत्त:, इतर:, अपूर्व:, अनिवृत्तक:, सूक्ष्म:, शान्त:, पर:क्षीण:, योगी च इति त्रयोदश: गुणा: पौद्गलिका: कर्मप्रकृतिनिर्मिता: प्रोक्ता: ।
सरलार्थ :- तत्त्वज्ञानियों ने मिथ्यादृष्टि, सासादन, मिश्र, असंयतसम्यक्दृष्टि, देशविरत, प्रमत्तविरत, अप्रमत्तविरत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय, उपशांतमोह, क्षीणमोह, सयोगकेवली - इन तेरह गुणस्थानों को कर्मप्रकृतियों से निर्मित पौद्गलिक कहा है ।