योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 99: Difference between revisions
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प्रमत्तादि गुणस्थानों की वंदना मात्र पुण्यबंध का कारण - | <p class="Utthanika">प्रमत्तादि गुणस्थानों की वंदना मात्र पुण्यबंध का कारण -</p> | ||
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परं शुभोपयोगाय जायमाना शरीरिणाम् ।<br> | परं शुभोपयोगाय जायमाना शरीरिणाम् ।<br> | ||
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<p><b> अन्वय </b>:- परं शुभोपयोगाय जायमाना (प्रमत्तादि-गुणस्थान-वन्दना) शरीरिणां संसारसुखकारणं विविधं पुण्यं ददाति । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- परं शुभोपयोगाय जायमाना (प्रमत्तादि-गुणस्थान-वन्दना) शरीरिणां संसारसुखकारणं विविधं पुण्यं ददाति । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- परन्तु वह प्रमत्तादि गुणस्थानों की, की गई वंदना उत्कृष्ट शुभोपयोग के लिये निमित्तरूप होती हुई संसारस्थित जीवों को अनेक प्रकार का सर्वोत्तम पुण्य प्रदान करती है, जो उत्कृष्ट संसार सुखों का कारण होती है । </p> | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- परन्तु वह प्रमत्तादि गुणस्थानों की, की गई वंदना उत्कृष्ट शुभोपयोग के लिये निमित्तरूप होती हुई संसारस्थित जीवों को अनेक प्रकार का सर्वोत्तम पुण्य प्रदान करती है, जो उत्कृष्ट संसार सुखों का कारण होती है । </p> | ||
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Latest revision as of 10:23, 15 May 2009
प्रमत्तादि गुणस्थानों की वंदना मात्र पुण्यबंध का कारण -
परं शुभोपयोगाय जायमाना शरीरिणाम् ।
ददाति विविधं पुण्यं संसारसुखकारणम् ।।९९।।
अन्वय :- परं शुभोपयोगाय जायमाना (प्रमत्तादि-गुणस्थान-वन्दना) शरीरिणां संसारसुखकारणं विविधं पुण्यं ददाति ।
सरलार्थ :- परन्तु वह प्रमत्तादि गुणस्थानों की, की गई वंदना उत्कृष्ट शुभोपयोग के लिये निमित्तरूप होती हुई संसारस्थित जीवों को अनेक प्रकार का सर्वोत्तम पुण्य प्रदान करती है, जो उत्कृष्ट संसार सुखों का कारण होती है ।