योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 103: Difference between revisions
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दृश्यते ज्ञायते किंचिद् यदक्षैरनुभूयते ।<br> | दृश्यते ज्ञायते किंचिद् यदक्षैरनुभूयते ।<br> | ||
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<p><b> अन्वय </b>:- अक्षै: यत् किंचित् दृश्यते ज्ञायते अनुभूयते तत् सर्वं आत्मन: बाह्यं विनश्वरं अचेतनं (भवति) । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- अक्षै: यत् किंचित् दृश्यते ज्ञायते अनुभूयते तत् सर्वं आत्मन: बाह्यं विनश्वरं अचेतनं (भवति) । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- इन्द्रियों से जो कुछ भी देखा जाता है, जाना जाता है और अनुभव किया जाता है; वह सर्व आत्मा से बाह्य, नाशवान तथा अचेतन है । </p> | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- इन्द्रियों से जो कुछ भी देखा जाता है, जाना जाता है और अनुभव किया जाता है; वह सर्व आत्मा से बाह्य, नाशवान तथा अचेतन है । </p> | ||
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इंद्रिय गोचर सब पुद्गल हैं -
दृश्यते ज्ञायते किंचिद् यदक्षैरनुभूयते ।
तत्सर्वात्मनो बाह्यं विनश्वरमचेतनम् ।।१०३।।
अन्वय :- अक्षै: यत् किंचित् दृश्यते ज्ञायते अनुभूयते तत् सर्वं आत्मन: बाह्यं विनश्वरं अचेतनं (भवति) ।
सरलार्थ :- इन्द्रियों से जो कुछ भी देखा जाता है, जाना जाता है और अनुभव किया जाता है; वह सर्व आत्मा से बाह्य, नाशवान तथा अचेतन है ।