योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 108: Difference between revisions
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कर्मणामुदयसंभवा गुणा: शामिका: क्षयशमोद्भवाश्च ये ।<br> | |||
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चित्रशास्त्रनिवहेन वर्णितास्ते भवन्ति निखिला विचेतना: ।।१०८।। | |||
<p><b> अन्वय </b>:- | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- ये गुणा: (भावा:) कर्मणां-उदय-संभवा:, शामिका:, च क्षयशम:-उद्भवा: (सन्ति) ते अखिला: चित्र-शास्त्र-निवहेन विचेतना: वर्णिता: भवन्ति । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- जो गुण अर्थात् भाव, कर्मो के उदय से उत्पन्न होने के कारण औदयिक हैं, कर्मो के उपशमजन्य होने से औपशमिक हैं तथा कर्मो के क्षयोपशम से प्रादुर्भूत होने के कारण क्षायोपशमिक हैं, वे सब भाव विविध शास्त्र-समूह द्वारा चेतना विरहित/अचेतन वर्णित हैं । अर्थात् अनेक शास्त्रों में उन्हें अचेतन कहा है । </p> | ||
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Latest revision as of 10:26, 15 May 2009
कर्म-निमित्तक औदयिकादि सब भाव अचेतन -
(रथोद्धता)
कर्मणामुदयसंभवा गुणा: शामिका: क्षयशमोद्भवाश्च ये ।
चित्रशास्त्रनिवहेन वर्णितास्ते भवन्ति निखिला विचेतना: ।।१०८।।
अन्वय :- ये गुणा: (भावा:) कर्मणां-उदय-संभवा:, शामिका:, च क्षयशम:-उद्भवा: (सन्ति) ते अखिला: चित्र-शास्त्र-निवहेन विचेतना: वर्णिता: भवन्ति ।
सरलार्थ :- जो गुण अर्थात् भाव, कर्मो के उदय से उत्पन्न होने के कारण औदयिक हैं, कर्मो के उपशमजन्य होने से औपशमिक हैं तथा कर्मो के क्षयोपशम से प्रादुर्भूत होने के कारण क्षायोपशमिक हैं, वे सब भाव विविध शास्त्र-समूह द्वारा चेतना विरहित/अचेतन वर्णित हैं । अर्थात् अनेक शास्त्रों में उन्हें अचेतन कहा है ।