योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 112: Difference between revisions
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<p><b> सरलार्थ </b>:- जब तक यह जीव चेतन-अचेतनरूप पर-पदार्थो में निजत्वबुद्धि/अपनेपन की बुद्धि रखता है अर्थात् पर पदार्थो को अपना समझता है, तब तक इस जीव का मोह अर्थात् मिथ्यात्व बढ़ता | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- जब तक यह जीव चेतन-अचेतनरूप पर-पदार्थो में निजत्वबुद्धि/अपनेपन की बुद्धि रखता है अर्थात् पर पदार्थो को अपना समझता है, तब तक इस जीव का मोह अर्थात् मिथ्यात्व बढ़ता रहता है । </p> | ||
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मिथ्यात्व वृद्धि का कारण -
सचित्ताचित्तयोर्यावद्द्रव्ययो: परयोरयम् ।
आत्मीयत्व-मतिं धत्ते तावन्मोहो विवर्धते ।।११२।।
अन्वय :- यावत् अयं (जीव:) सचित्त-अचित्तयो: परयो: द्रव्ययो: आत्मीयत्व-मतिं धत्ते तावत् मोह: विवर्धते ।
सरलार्थ :- जब तक यह जीव चेतन-अचेतनरूप पर-पदार्थो में निजत्वबुद्धि/अपनेपन की बुद्धि रखता है अर्थात् पर पदार्थो को अपना समझता है, तब तक इस जीव का मोह अर्थात् मिथ्यात्व बढ़ता रहता है ।