योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 115: Difference between revisions
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<p><b> अन्वय </b>:- (अहं) देहादि-वस्तुन: स्वामी आसम्, अस्मि, भविष्यामि - मिथ्यादृष्टे: इयं बुद्धि: कर्मागमन-कारिणी (भवति) । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- (अहं) देहादि-वस्तुन: स्वामी आसम्, अस्मि, भविष्यामि - मिथ्यादृष्टे: इयं बुद्धि: कर्मागमन-कारिणी (भवति) । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- `ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म, मोह-राग-द्वेषादि भावकर्म एवं शरीरादि नोकर्मरूप वस्तुओं का पहले अर्थात् भूतकाल में मैं स्वामी था, इन वस्तुओं का वर्तमानकाल में मैं स्वामी हूँ और आगे भविष्यकाल में मैं स्वामी होऊँगा'; मिथ्यादृष्टि की यह बुद्धि कर्मो का आस्रव करानेवाली है | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- `ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म, मोह-राग-द्वेषादि भावकर्म एवं शरीरादि नोकर्मरूप वस्तुओं का पहले अर्थात् भूतकाल में मैं स्वामी था, इन वस्तुओं का वर्तमानकाल में मैं स्वामी हूँ और आगे भविष्यकाल में मैं स्वामी होऊँगा'; मिथ्यादृष्टि की यह बुद्धि कर्मो का आस्रव करानेवाली है । </p> | ||
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मिथ्यात्व-पोषक परिणाम -
आसमस्मि भविष्यामि स्वामी देहादि-वस्तुन: ।
मिथ्या-दृष्टेरियं बुद्धि: कर्मागमन-कारिणी ।।११५।।
अन्वय :- (अहं) देहादि-वस्तुन: स्वामी आसम्, अस्मि, भविष्यामि - मिथ्यादृष्टे: इयं बुद्धि: कर्मागमन-कारिणी (भवति) ।
सरलार्थ :- `ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म, मोह-राग-द्वेषादि भावकर्म एवं शरीरादि नोकर्मरूप वस्तुओं का पहले अर्थात् भूतकाल में मैं स्वामी था, इन वस्तुओं का वर्तमानकाल में मैं स्वामी हूँ और आगे भविष्यकाल में मैं स्वामी होऊँगा'; मिथ्यादृष्टि की यह बुद्धि कर्मो का आस्रव करानेवाली है ।