भास्कर वेदांत या द्वैताद्वैत: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
(Imported from text file) |
(No difference)
|
Revision as of 16:30, 19 August 2020
- भास्कर वेदांत या द्वैताद्वैत
- सामान्य परिचय
स्या./सं.मं./परि-च./441 ई.श.10 में भट्ट भास्कर ने ब्रह्मसूत्र पर भाष्य रचा। इनके यहाँ ज्ञान व क्रिया दोनों मोक्ष के कारण हैं। संसार में जीव अनेक रहते हैं। परंतु मुक्त होने पर सब ब्रह्म में लय हो जाते हैं। ब्रह्म व जगत् में कारण कार्य संबंध है, अतः दोनों ही सत्य हैं।
- तत्त्व विचार
(भारतीय दर्शन)- मूल तत्त्व एक है। उसके दो रूप हैं–कारण ब्रह्म व कार्य ब्रह्म।
- कारण ब्रह्म एक, अखंड, व्यापक, नित्य, चैतन्य है और कार्य ब्रह्म जगत् स्वरूप व अनित्य है।
- स्वतः परिणामी होने के कारण वह कारण ब्रह्म ही कार्य ब्रह्म में परिणमित हो जाता है।
- जीव व जगत् का प्रपंच ये दोनों उसी ब्रह्म की शक्तियाँ हैं। प्रलयावस्था में जगत् का सर्व प्रपंच और मुक्तावस्था में जीव स्वयं ब्रह्म में लय हो जाते हैं । जीव उस ब्रह्म की भोक्तृशक्ति है और आकाशादि उसके भोग्य।
- जीव अणु रूप व नित्य है। कर्तृत्व उसका स्वभाव नहीं है। 6. जड़ जगत् भी ब्रह्म का ही परिणाम है। अंतर केवल इतना है कि जीव में उसकी अभिव्यक्ति प्रत्यक्ष है और उसमें अप्रत्यक्ष।
- मुक्ति विचार
(भारतीय दर्शन)- विद्या के निरंतर अभ्यास से ज्ञान प्रगट होता है और आजीवन शम, दम आदि योगानुष्ठानों के करने से शरीर का पतन, भेद का नाश, सर्वज्ञत्व की प्राप्ति और कर्तृत्व का नाश हो जाता है।
- निवृत्ति मार्ग के क्रम में इंद्रियाँ मन में, बुद्धि आत्मा में और अंत में वह आत्मा भी परमात्मा में लय हो जाता है।
- मुक्ति दो प्रकार की है–सद्योमुक्ति व क्रममुक्ति। सद्योमुक्ति साक्षत् ब्रह्म को उपासना से तत्क्षण प्राप्त होता है। और क्रममुक्ति, कार्य ब्रह्म द्वारा सत्कृत्यों के कारण देवयान मार्ग से अनेकों लोकों में घूमते हुए हिरण्यगर्भ के साथ-साथ होती है।
- जीवन्मुक्ति कोई चीज नहीं। बिना शरीर छूटे मुक्ति असंभव है।
- सामान्य परिचय