सूत्रपाहुड़ गाथा 7: Difference between revisions
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Latest revision as of 19:54, 3 November 2013
सुत्तत्थपयविणट्ठो मिच्छादिट्ठी हु सो मुणेयव्वो ।
खेडे वि ण कायव्वं पाणिप्पत्तं सचेलस्स ॥७॥
सूत्रार्थपदविनष्ट: मिथ्यादृष्टि: हि स: ज्ञातव्य: ।
खेलेऽपि न कर्तव्यं पाणिपात्रं१ सचेलस्य ॥७॥
आगे कहते हैं कि जो सूत्र के अर्थ पद से भ्रष्ट है, उसको मिथ्यादृष्टि जानना -
अर्थ - जिसके सूत्र का अर्थ और पद विनष्ट है वह प्रगट मिथ्यादृष्टि है इसीलिए जो सचेल है, वस्त्रसहित है उसको ‘खेडे वि’ अर्थात् हास्य कुतूहल में भी पाणिपात्र अर्थात् हस्तरूप पात्र से आहारदान नहीं करना ।
भावार्थ - - सूत्र में मुनि का रूप नग्न दिगम्बर कहा है । जिसके ऐसा सूत्र का अर्थ तथा अक्षररूप पद विनष्ट है और आप वस्त्र धारण करके मुनि कहलाता है, वह जिन आज्ञा से भ्रष्ट हुआ प्रगट मिथ्यादृष्टि है, इसलिए वस्त्र सहित को हास्य कुतूहल से भी पाणिपात्र अर्थात् आहारदान नहीं करना तथा इसप्रकार भी अर्थ होता है कि ऐसे मिथ्यादृष्टि को पाणिपात्र आहार लेना योग्य नहीं है, ऐसा भेष हास्य कुतूहल से भी धारण करना योग्य नहीं है कि वस्त्रसहित रहना और पाणिपात्र भोजन करना, इसप्रकार से तो क्रीड़ामात्र भी नहीं करना ॥७॥