मोक्षपाहुड़ गाथा 8: Difference between revisions
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बहिरत्थे फुरियमाणो इंदियदारेण १णियसरूवचुओ ।
णियदेहं अप्पाणं अज्झवसदि मूढदिट्ठीओ ॥८॥
बहिरर्थे स्फुरितमना: इन्द्रियद्वारेण निजस्वरूपच्युत: ।
निजदेहं आत्मानं अध्यवस्यति मूढदृष्टिस्तु ॥८॥
आगे बहिरात्मा की प्रवृत्ति कहते हैं -
अर्थ - मूढ़दृष्टि अज्ञानी मोही मिथ्यादृष्टि है, वह बाह्य पदार्थ धन, धान्य, कुटुम्ब आदि इष्ट पदार्थों में स्फुरित (तत्पर) मनवाला है तथा इन्द्रियों के द्वार से अपने स्वरूप से च्युत है और इन्द्रियों को ही आत्मा जानता है ऐसा होता हुआ अपने देह को ही आत्मा जानता है निश्चय करता है, इसप्रकार मिथ्यादृष्टि बहिरात्मा है ।
भावार्थ - ऐसा बहिरात्मा का भाव है, उसको छोड़ना ॥८॥