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| <p id="1">(1) वाद्यों की एक जाति । ये चर्मावृत होते हैं । मुरज, पटह, पखावजक आदि वाद्य पुष्कर वाद्य ही हैं । महापुराण 3. 174, 14.115 </p>
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| <p id="2">(2) अच्युत स्वर्ग का एक विमान । महापुराण 73. 30</p>
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| <p id="3">(3) तीसरा द्वीप । चन्द्रादित्य नगर इसी में स्थित था । इसकी पूर्व पश्चिम दिशाओं में दो मेरु हैं । यह कमल के विशाल चिह्न से युक्त है । इसका विस्तार कालोदधि से दुगुना है और यह उसे चारों ओर से घेरे हुए है । इसका आधा भाग मनुष्य क्षेत्र की सीमा निश्चित करने वाले मानुषोत्तर पर्वत से घिरा हुआ है । उत्तर-दक्षिण दिशा में इष्वाकार पर्वतों से विभक्त होने से इसके पूर्व पुष्करार्ध और पश्चिम पुष्करार्ध ये दो भेद हैं । दोनों खण्डों के मध्य में मेरु पर्वत है । इसकी बाह्य परिधि एक करोड़ बयालीस लाख तीस हजार दो सौ पच्चीस योजन से कुछ अधिक है । इसका तीन लाख पचपन हजार छ: सौ चौरासी योजन प्रमाण क्षेत्र पर्वतों से रुका हुआ है महापुराण 7.13, 54.8, पद्मपुराण 85.96, हरिवंशपुराण 5.576-589</p>
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| | #REDIRECT [[पुष्कर]] |
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| [[Category: पुराण-कोष]]
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| [[Category: प]]
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