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| <p id="1"> (1) अग्रायणीयपूर्व की पंचमवस्तु के चौथे कर्मप्रकृति प्राभृत का तेरहवां योगद्वार । हरिवंशपुराण 10. 81, 83 दे अग्रायणीयपूर्व</p>
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| <p id="2">(2) कषाय के उदय से अनुरंजित मन, वचन, काय की प्रवृत्ति । इसके मूलत: दो भेद हैं― द्रव्यलेश्या और भावलेश्या । विशेषरूप से इसके छ: भेद हैं― पीत, पद्म, शुक्ल, कृष्ण, नील और कापोत । महापुराण 10.96-98, पांडवपुराण 22.72</p>
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| [[Category: पुराण-कोष]]
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| [[Category: ल]]
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