|
|
(2 intermediate revisions by the same user not shown) |
Line 1: |
Line 1: |
| <p> आस्रव के दो भेदों में प्रथम भेद । यह कषायपूर्वक होता है । मिथ्यादृष्टि से सूक्ष्मतसाम्पराय गुणस्थान तक के जीवों के सकषाय होने से यह आस्रव होता है । इसके पांच इन्द्रियाँ, चार कषाय, पाँच अव्रत, और पच्चीस क्रियाएँ ये 39 द्वार हैं― पच्चीस क्रियाओं के नाम निम्न प्रकार है―</p>
| |
| <p>1. सम्यक्त्व 2. मिथ्यात्व 3. प्रयोग 4. समादान 5. कायिकी 6. क्रियाधिकरणी 7. पारितापिकी 8. प्राणातिपातिकी 9. दर्शन 10. स्पर्शन 11. प्रत्यायिकी 12. समन्तानुपातिनी 13. अनाभोग 14. स्वहस्त 15. निसर्ग 16. विदारण 18. आज्ञाव्यापादिकी 19. अनाकांक्षी 20. प्रारम्भ 21 पारिग्रहिकी 22. माया 24. मिथ्यादर्शन और 25 अप्रत्याख्यान । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.58-82 </span></p>
| |
|
| |
|
| |
|
| <noinclude>
| | #REDIRECT [[सांपरायिक आस्रव]] |
| [[ सामीप्य | पूर्व पृष्ठ ]] | |
| | |
| [[ साम्य | अगला पृष्ठ ]]
| |
| | |
| </noinclude>
| |
| [[Category: पुराण-कोष]]
| |
| [[Category: स]]
| |