समयसार - आत्मख्याति टीका - कलश 49: Difference between revisions
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( शार्दूलविक्रीडित )
व्याप्यव्यापकता तदात्मनि भवेन्नैवातदात्मन्यपि
व्याप्यव्यापकभावसम्भवमृते का कर्तृकर्मस्थिति: ।
इत्युद्दामविवेकघस्मरमहोभारेण भिन्दंस्तमो
ज्ञानीभूय तदा स एष लसित: कर्तृत्वशून्य: पुमान् ॥४९॥