समयसार - आत्मख्याति टीका - कलश 57: Difference between revisions
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( वसन्ततिलका )
अज्ञानतस्तु सतृणाभ्यवहारकारी
ज्ञानं स्वयं किल भवन्नपि रज्यते य: ।
पीत्वा दधीक्षुमधुराम्लरसातिगृद्धय्या
गां दोग्धि दुग्धमिव नूनमसौ रसालम् ॥५७॥