द्रव्य संग्रह - गाथा 28: Difference between revisions
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Latest revision as of 11:55, 17 May 2021
आस्रवबंधणसंवरणिज्जरमोक्खो सपुण्णपावा जे ।
जीवाजीवविसेसा तेवि समासेण पभणामो ।।28।।
अन्वय―जीवाजीवविसेसा जे सपुण्णपावा आसवबंधणसंवरणिज्जरमोक्खो तेवि समासेण पभणामो ।
अर्थ―जीव और अजीव के विशेष (भेद) जो पुण्य, पाप, प्रासव, बंध, संवर, निर्जरा मोक्ष हैं उनको भी संक्षेप से कहते हैं―
प्रश्न 1-―ये आस्रवादिक जीव अजीव के क्या द्रव्यार्थिक दृष्टि से भेद हैं?
उत्तर―ये आस्रवादिक जीव और अजीव के पर्याय हैं । इसी कारण ये सातों दो-दो प्रकार के हो जाते हैं―(1) जीवपुण्य, (2) अजीवपुण्य । (1) जीवपाप, (2) अजीवपाप । (1) जीवास्रव, (2) अजीवास्रव । (1) जीवबंध, (2) अजीवाबंध । (1) जीवसंवर, (2) अजीवसंवर । (1) जीवनिर्जरा, (2) अजीवनिर्जरा । (1) जीवमोक्ष, (2) अजीवमोक्ष ।
प्रश्न 2―इनका स्वरूप क्या है ?
उत्तर―इन सब विशेषों का स्वरूप विशेषरूप से आगे गाथावों में कहा जायेगा । इनका सामान्यस्वरूप यहाँ जान लेना चाहिये ।
प्रश्न 3―पुण्य किसे कहते हैं?
उत्तर―शुभ आस्रव को पुण्य कहते हैं ।
प्रश्न 4―पाप किसे कहते हैं?
उत्तर―अशुभ आस्रव को पाप कहते हैं ।
प्रश्न 5―आस्रव किसे कहते हैं?
उत्तर―बाह्य तत्त्व के आने को आस्रव कहते हैं ।
प्रश्न 6―बंध किसे कहते हैं?
उत्तर―बंधने को बंध कहते हैं ।
प्रश्न 7―संवर किसे कहते हैं?
उत्तर―बाह्य तत्त्व का आना रुक जाना संवर है ।
प्रश्न 8―निर्जरा किसे कहते हैं?
उत्तर―बाह्य तत्त्व के झड़ जाने को निर्जरा कहते हैं ।
प्रश्न 9―मोक्ष किसे कहते हैं?
उत्तर―बाह्य तत्त्व के बिल्कुल छूट जाने को मोक्ष कहते हैं ।
प्रश्न 10―क्या जीवविशेष और अजीवविशेष बिल्कुल स्वतंत्र हैं?
उत्तर―ये जीव के विशेष अजीव के विशेष के निमित्त से हैं और ये अजीव के विशेष जीव के विशेष के निमित्त से हैं ।
अब उक्त विशेषों में से जीवास्रव और अजीवास्रव का स्वरूप कहते हैं―