समयसार - आत्मख्याति टीका - कलश 94: Difference between revisions
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( शार्दूलविक्रीडित )
दूरं भूरिविकल्पजालगहने भ्राम्यन्निजौघाच्चयुतो
दूरादेव विवेकनिम्नगमनान्नीतो निजौघं बलात् ।
विज्ञानैकरसस्तदेकरसिनामात्मानमात्मा हरन्
आत्मन्येव सदा गतानुगततामायात्ययं तोयवत् ॥९४॥