मोक्षशास्त्र - सूत्र 9-8: Difference between revisions
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Latest revision as of 11:56, 17 May 2021
मार्गाच्यवननिजरार्थं परिसोढव्याः परीषहाः ।। 9-8 ।।
परीषह सहन करने के प्रयोजन―मार्ग से न गिरने के और कर्मों की निर्जरा लिए परीषह सहन करने चाहिए । यहाँ परीषह शब्द चार अक्षर वाला है, उससे छोटा भी नाम हो सकता था, किंतु परीषह शब्द में ही पूरा अर्थ आ जाये, इसलिए यह शब्द दिया है । चारों ओर से किसी भी प्रकार का उपसर्ग आये तो आत्मा को सर्व प्रदेशों में अध्यात्म विज्ञान द्वारा जो एक तृप्ति होती है उस तृप्ति के से ये सब सुगम हो जाया करते हैं । यह संवर का प्रकरण है, इस कारण मोक्ष पद का प्राप्त कराने वाला जो संवर तत्त्व है उसका ही मार्ग ही दिखाया जा रहा है, यह चित्त में धारण करना चाहिए । तो वह जो संवर का प्राप्त कराने वाला मार्ग है, उस मार्ग से च्युत न हो जाऊँ, इस भावना से मुनिजन परीषहों पर विजय प्राप्त करते हैं । कुछ परीषह तो जान बूझकर सहे जाते हैं और कुछ परीषह किसी दूसरे कारण से आ जाते हैं इस प्रकार आगंतुक भी होते हैं । सर्व प्रकार के परीषहों पर समता से विजय करने वाला शुद्ध मार्ग से नहीं गिरता जो परिषह जान बूझकर सहे जाते हैं उसका भी कारण यह है कि वह अपने आप में ऐसा दृढ़ हो जाये कि इससे भी कठिन परीषह आयें तो उस समय भी मैं अपने मार्ग से च्युत न हो जाऊँ । जो मुनि कर्म के आने के द्वारों को रोक लेता है अर्थात् संवर तत्त्व प्राप्त कर लेता है वह जैनेंद्र मार्ग से मैं कभी च्युत न होऊँ, इस उद्देश्य से परीषहों को पहले से ही विजय कर लेते हैं । परीषहों के विजय करने के एक कारण तो मार्ग से नहीं गिरते हैं । दूसरा
प्रयोजन है कर्मों की निर्जरा । जो मुनि परीषहों को जीत लेते हैं, परीषहों से तिरस्कृत नहीं होते वे प्रधान संवर तत्त्व का आस्रव करके भीतर एक स्वतंत्र रूप से अपने विकास के करने में सफल होते हैं और वे क्षपक श्रेणी पर आरोहण कर सकें, ऐसी सामर्थ्य को पाते हैं और क्षपक श्रेणी पर चढ़कर समस्त कषायों का विध्वंस कर ज्ञान ध्यान रूपी कुल्हाड़ी से इन मूल कर्मों को छेदकर नाशकर ऐसी ऊपर प्रगति करते हैं कि जैसे मानो किसी पक्षी के पंख में धूल लग गई हो तो वह एकदम पंख फड़फड़ाकर धूल को झाड़कर ऊपर उड़ जाया करता है, तो यों निर्जरा के लिए ये परीषह सहन की जानी चाहिए । परीषहों के विजय का प्रयोजन जानकर अब जिज्ञासा होती है कि वे परीषह कितने हैं और कौन-कौन हैं, उनका निर्देश करने के लिये सूत्र कहते हैं ।