ज्ञानार्णव - श्लोक 1306: Difference between revisions
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Latest revision as of 16:33, 2 July 2021
वज्रकाया महासत्त्वा निष्कंपा: सुस्थिरासना:।
सर्वावस्थास्वलं ध्यात्वा गता: प्राग्योगिन: शिवम्।।1306।।
जो वज्रकाय है, जिसका शरीर वज्र की तरह दृढ़ है, वज्रवृषभनाराचसंघनन के जो धारक थे, बड़े पराक्रमी धीर वीर स्थिर आसन वाले वे योगी सब अवस्थावों में ध्यान करके पहिले समय में मोक्ष को प्राप्त हुए हैं, जिस किसी भी आसन से ध्यान विशुद्धि बन जाय तो किसी भी आसन के बाद वे मुक्ति को प्राप्त हुए हैं, पर अधिकतर कथन ऐसा है कि उसके बाद अरहंत हुए, पर वे बहुत समय रहते हैं तो उनके निसर्ग से पद्मासन या कायोत्सर्ग होता है, पर ध्यान के आसन कोई भी हो सकते हैं।