ज्ञानार्णव - श्लोक 1366: Difference between revisions
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Latest revision as of 16:33, 2 July 2021
भयशोकदु:खपीड़ा―विघ्नौधपरंपरां विनाशं च।
व्याचष्टे देहभृतां दहनो दाहस्वभावोऽयम्।।1366।।
अब तीसरा मंडल है अग्निमंडल। अग्निमंडल का पवन दाहस्वभावरूप है। वह पवन जीवों के भय, शोक, दु:ख, पीड़ा तथा विषयसमूहों की परंपरा और विनाश आदिक कार्यों को प्रकट करता है। जब अग्नितत्त्व की श्वास निकली जिसका स्वरूप पहिले बताया है कि जो कुछ तिर्यक रूप ये श्वास निकले, कभी नासिका के मिले हुए स्थान से, कभी बाहर के स्थान से यों जिस चाहे स्थान से नासिका से श्वास निकली तो उसे अग्निमंडल की श्वास कहते हैं और इस अग्निमंडल की श्वास का फल उत्तम नहीं कहा गया है। तो अग्निमंडल की पवन श्वास जब निकल रही हो तो उस समय यह निर्णय करना चाहिए कि कोई आपत्ति, कोई चिंता, दु:ख, पीड़ा ये आने वाले हैं ऐसी सूचना देती है।