ज्ञानार्णव - श्लोक 1692: Difference between revisions
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Latest revision as of 16:33, 2 July 2021
सर्वे च हुंडसंस्थाना: स्फुलिंगसदृशे क्षणा:।
विवर्द्धिताशुभध्याना: प्रचंडाश्चंडशासना:।।1692।।
नारकियों की अशुभ ध्यानिता व विड्रूपता―ये नारकी जीव सभी हुंडक संस्थान वाले हैं। हुंडक संस्थान कहते हैं बेढंगे शरीर को। नारकियों के बेढंगे शरीर हैं। अभी हम आपके कितने सुडौल शरीर हैं, पर कोई अंग कैसा ही हो, कोई कैसा ही हो तो वह हुंडक संस्थान कहलाने लगता है और भी देखो, उन नारकी जीवों की आंखों से अग्नि बरसती है। ऐसी अत्यंत गरमी का कष्ट भोगने वाले नारकी वहाँ नरकों में जन्म लेते हैं, दु:खी होते हैं। वे नारकी जीव निरंतर संक्लेश परिणाम बनाये रहते हैं, उनके क्रोध कषाय अत्यंत प्रचंड है। उनका शासन भी प्रचंड है। बड़े से बड़ा शासन करने वाला भी कोई नारकी हो तो भी उसके पुण्य इतना नहीं है कि वह उस पुण्य के फल में कुछ सुख प्राप्त कर सके, ऐसा नहीं है कि उस शासन काल में वह कुछ शांति प्राप्त कर सके। वे नारकी जीव निरंतर अशुभ परिणाम बनाये रहते हैं। सबसे अधिक दु:ख तो है इस मन का। धनवैभव के कम होने का या अपमान आदिक होने का उतना बड़ा क्लेश नहीं होता जितना क्लेश मन के सोच लेने का क्लेश होता है। तो वहाँ गर्मी के दिनों में गरमी अत्यंत प्रचंड है, सर्दी के दिनों में सर्दी अत्यंत प्रचंड है, उन नारकियों का शासन भी प्रचंड है और उनके क्रोध कषाय भी प्रचंड है, तो निरंतर ऐसी ही घटनाओं के बीच उन नारकियों का समय कटता है, ऐसी ही उन नारकियों की निरंतर प्रक्रियाएं चलती हैं जिनके कारण उन नारकी जीवों को निरंतर दु:ख भोगना पड़ता है।