ज्ञानार्णव - श्लोक 1693: Difference between revisions
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Latest revision as of 16:33, 2 July 2021
तत्राक्रंदरवै: सार्द्धं श्रूयंते कर्कशा: स्वना:।
दृश्यंते गृध्रगोमायुसर्पशार्दूलमंडला:।।1693।।
नारकियों का घोर आक्रंदन―उस नरक भूमि में चारों ओर से रोने के, पुकारने के कर्कश शब्द सुनाई पड़ते हैं, ऐसे अधोलोक में जहां कि भयानक दु:ख है, स्याल, सर्प, सिंह आदिक पशु यद्यपि वहाँ नहीं हैं फिर भी वे नारकी जीव विक्रिया करे ऐसे भयानक शरीरों को धारण करते हैं और दूसरे नारकी जीवों को दु:ख देते हैं। तो ऐसा कुछ उनके पाप का उदय चलता है कि उनको निरंतर आकुलित बने रहना पड़ता है। वे नारकी जीव कल्पनाएं करके अपने आपमें बड़ी आकुलता मचाते रहते हैं। सुनने में यद्यपि ऐसा लगता होगा कि हैं कहां नारकी उसके सिर पर कहां आ गये, कल्पनाएं करके बड़े कष्ट ही भोगते हैं।