ज्ञानार्णव - श्लोक 2168: Difference between revisions
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Latest revision as of 16:33, 2 July 2021
ततः क्रमेण स पश्चाद्विनिवर्त्तते ।
लोकपूरणत: श्रीमान चतुर्भि: समयै: पुन: ।।2168।।
लोकपूरण समुद्धात के पश्चात् चार समयों में प्रदेशों की देहसमता―श्रीमान केवलीभगवान । अहो, भगवान को ही श्रीमान कहना चाहिए वस्तुत: । लोकव्यवहार की पद्धति तो सबके साथ श्रीमान लगाने की है―श्रीमान घसोंटेमल जी, श्रीमान लटोरेमल जी आदि । पर श्रीमान शब्द का प्रयोग वस्तुत: प्रभु में ही लगेगा । श्री कहते हैं―श्रयते इति श्री: । जो आत्मा का आश्रय करे उसका नाम है श्री । उस श्री को कहाँ ढूंढ रहे हो? वह श्री उस आत्मा में है, आत्मा का आश्रय करना है । आत्मा में पूर्ण विकास हुआ है, उसका नाम है श्री । वह श्री है ज्ञानलक्ष्मी, परिपूर्ण केवलज्ञान से युक्त को कहते हैं श्रीमान् तो इस अंतरंग की श्री से शोभायमान वे केवली भगवान लोकपूरण समुद्धात कर के अब वापसी संकोच प्रदेश करते हुए वे अपने आपके देह में समा जाते हैं जिसमें चार समय लगते हैं ।