मोक्षशास्त्र - सूत्र 5-36: Difference between revisions
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Latest revision as of 16:35, 2 July 2021
द्व्यधिकादिगुणानां तु ।। 5-36 ।।
दो या दो से अधिक अंश से स्निग्ध रूक्ष परमाणु का उससे दो अधिक अंशों के स्निग्ध रूक्ष परमाणु के साथ बंध होने का नियम―सूत्र का अर्थ है कि किंतु दो से अधिक डिग्री वाले परमाणुओं का ही बंध होता है, अर्थात असमान डिग्री वाले परमाणुओं का परस्पर बंध होता है, यह तो युक्त है ही, पर उसमें भी उन दोनों में केवल दो डिग्रियों का घटाव बढ़ाव होना चाहिए । जैसे एक अणु 2 डिग्री का चिकना है और दूसरा अणु 4 डिग्री का चिकना या रूखा है तो उनका बंध हो जायेगा । इसी तरह अन्य उदाहरण भी लगाना । कोई 15 डिग्री का रूखा परमाणु है और दूसरा परमाणु 17 डिग्री का रूखा चिकना है तो उनका बंध हो तो जायेगा । हां एक गुण वाले चिकने रूखे के साथ किसी का भी बंध नहीं होता । चाहे 2 गुना अधिक हो, जैसे एक डिग्री के रूखे परमाणु का 3 डिग्री के रूखे चिकने परमाणु के साथ भी बंध नहीं होता । तात्पर्य यह है कि चाहे स्निग्ध स्निग्ध हो, रूक्ष रूक्ष हो, स्निग्ध रूक्ष हो, रूक्ष स्निग्ध हो । यदि एक की अनेक डिग्री से दूसरे की 1/2 डिग्री अधिक हो तो उनका बंध हो जाता है ।
संयोग और बंध के अंतर का विवरण―यहाँ एक शंका हो सकती है कि उन परमाणुओं का संयोग हो गया है उसमें बंध की बात क्यों कही जा रही है? इकट्ठे परमाणु हो गये, पिंड बन गए । जैसे अनेक तिलों का लड्डू बन गया तो वहाँ संयोग ही तो हुआ है और पिंड एक हो जायेगा । बंध की कल्पना क्यों की जा रही? इस शंका का उत्तर यह है कि संयोग में तो केवल प्राप्ति मात्र है । निकट आ गये, पर संयोग में परस्पर प्रवेश नहीं होता । और, बंध में उन स्कंधों का, परमाणुओं का एक-एक विशिष्ट प्रकार का बंध होता है, जिसका असर यह पड़ता है कि जिस परमाणु में जिस जाति का अधिक गुण है तो उस ही रूप दूसरा परमाणु परिणम जाता है । पर यह परिणमन संयोग अवस्था में नहीं हो सकता । इसी भाव को कहने के लिए सूत्र कहते हैं ।