पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 143 - अर्थ: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:08, 19 August 2021
आत्मार्थ का प्रसाधक, संवर से युक्त जो (जीव) वास्तव में आत्मा को जानकर नियत ज्ञान का ध्यान करता है, वह कर्मरज की निर्जरा करता है ।