पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - मूल गाथा: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:08, 19 August 2021
इंदसदवंदियाणं तिहुवणहिदमधुरविसदवक्काणं ।
अंतातीदगुणाणं णमो जिणाणं जिदभवाणं ॥1॥
समणमुहुग्गदमट्ठं चदुगदिविणिवारणं सणिव्वाणं ।
एसो पणमिय सिरसा समयमिणं सुणह वोच्छामि ॥2॥
समवाओ पंचण्हं समयमिणं जिणवरेहिं पण्णत्तं ।
सो चेव हवदि लोगो तत्तो अमओ अलोयक्खं ॥3॥
जीवा पोग्गलकाया धम्माधम्मं तहेव आयासं । ।
अत्थित्तम्हि य णियदा अणण्णमइया अणुमहंता ॥4॥
जेसिं अत्थिसहाओ गुणेहिं सह पज्जएहिं विविएहिं ।
ते होंति अत्थिकाया णिप्पण्णं जेहिं तेलोक्कं ॥5॥
ते चेव अत्थिकाया तिक्कालियभावपरिणदा णिच्चा ।
गच्छंति दवियभावं परियट्टणलिंगसंजुत्ता ॥6॥
अण्णोण्णं पविसंता देंता ओगासमण्णमण्णस्स ।
मेलंता वि य णिच्चं सगसब्भावं ण विजहंति ॥7॥
सत्ता सव्वपदत्था सविस्सरूवा अणंतपज्जाया ।
भंगुप्पादधुवत्ता सप्पडिवक्खा हवदि एक्का ॥8॥
दवियदि गच्छदि ताइं ताइं सब्भावपज्जयाइं जं ।
दवियं तं भण्णंति हि अणण्णभूदं तु सत्तादो ॥9॥
दव्वं सल्लक्खणियं उप्पादव्वयधुवत्तसंजुत्तं ।
गुणपज्जयासयं वा जं तं भण्णंति सव्वण्हू ॥10॥
उप्पत्ती य विणासो दव्वस्स य णत्थि अत्थि सब्भावो ।
वयमुप्पादधुवत्तं करेंति तस्सेव पज्जाया ॥11॥
पज्जयविजुदं दव्वं दव्वविमुत्ता य पज्जया णत्थि । ।
दोण्हं अणण्णभूदं भावं समणा परूवेंति ॥12॥
दव्वेण विणा ण गुणा गुणेहिं दव्वं विणा ण संभवदि ।
अव्वदिरित्तो भावो दव्वगुणाणं हवदि तम्हा ॥13॥
सिय अत्थि णत्थि उहयं अव्वत्तव्वं पुणो य तत्तिदयं ।
दव्वं खु सत्त्भंगं आदेसवसेण संभवदि ॥14॥
भावस्स णत्थि णासो णत्थि अभावस्स चेव उप्पादो ।
गुणपज्जएसु भावा उप्पादवये पकुव्वंति ॥15॥
भावा जीवादीया जीवगुणा चेदणा य उवओगा ।
सुरणरणारयतिरिया जीवस्स य पज्जया बहुगा ॥16॥
मणुसत्तणेण णट्ठो देही देवो व होदि इदरो वा । ।
उभयत्थ जीवभावो ण णस्सदि ण जायदे अण्णो ॥17॥
सो चेव जादि मरणं जादि ण णट्ठो ण चेव उप्पण्णो । ।
उप्पण्णो य विणट्ठो देवो मणुसोत्ति पज्जाओ ॥18॥
एवं सदो विणासो असदो भावस्स णत्थि उप्पादो । ।
तावदिओ जीवाणं देवो मणुसोत्ति गदिणामो ॥19॥
णाणावरणादीया भावा जीवेण सुट्ठु अणुबद्धा । ।
तेसिमभावं किच्चा अभूदपुव्वो हवदि सिद्धो ॥20॥
एवं भावाभावं भावाभावं अभावभावं च । ।
गुणपज्जयेहिं सहिदो संसरमाणो कुणदि जीवो ॥21॥
जीवा पोग्गलकाया आयासं अत्थिकाइया सेसा ।
अमया अत्थित्तमया कारणभूदा दु लोगस्स ॥22॥
सब्भाव सभावाणं जीवाणं तह य पोग्गलाणं च ।
परियट्टणसंभूदो कालो णियमेण पण्णत्तो ॥23॥
ववगद पणवण्णरसो ववगददोअट्ठगंधफासो य ।
अगुरुलहुगो अमुत्तो वट्टणलक्खो य कालोत्ति ॥24॥
समओ णिमिसो कट्ठा कलाय णाली तदो दिवारत्ती । (24)
मासोडु अयण संवच्छरोत्ति कालो परायत्तो ॥25॥
णत्थि चिरं वा खिप्पं मत्तारहियं तु सा वि खलु मत्ता । (25)
पोग्गलदव्वेण विणा तम्हा कालो पडुच्चभवो ॥26॥
जीवो त्ति हवदि चेदा उवओगविसेसिदो पहू कत्ता । (26)
भोत्ता सदेहमत्तो ण हि मुत्तो कम्मसंजुत्तो ॥27॥
कम्ममलविप्पमुक्को उड्ढं लोगस्स अंतमधिगंता । (27)
सो सव्वणाणदरिसी लहइ सुहमणिंदियमणंतं ॥28॥
जादो सयं स चेदा सव्वण्हू सव्वलोगदरिसी य । (28)
पावदि इंदियरहिदं अव्वाबाहं सगममुत्तं ॥29॥
पाणेहिं चदुहिं जीवदि जीविस्सदि जो हु जीविदो पुव्वं । (29)
सो जीवो पाणा पुण बल मिंदियमाउ उस्सासो ॥30॥
अगुरुलहुगाणंता तेहिं अणंतेहिं परिणदा सव्वे । (30)
देसेहिं असंखादा सियलोगं सव्वमावण्णा ॥31॥
केचिच्च अणावण्णा मिच्छादंसणकसायजोग जुदा । (31)
विजुदा य तेहिं बहुगा सिद्धा संसारिणो जीवा ॥32॥
जह पउमरायरयणं खित्तं खीरे पहासयदि खीरं । (32)
तह देही देहत्थो सदेहमेत्तं पभासयदि ॥33॥
सव्वत्थ अत्थि जीवो ण य एक्को एक्कगो य एक्कट्ठो । (33)
अज्झवसाणविसिट्ठो चिट्ठदि मलिणो रजमलेहिं ॥34॥
जेसिं जीवसहाओ णत्थि अभावो य सव्वहा तस्स । (34)
ते होंति भिण्णदेहा सिद्धा वचिगोयरमदीदा ॥35॥
ण कदाचिवि उप्पण्णो जम्हा कज्जं ण तेण सो सिद्धो । (35)
उप्पादेदि ण किंचिवि कारणमिह तेण ण स होहि ॥36॥
सस्सदमधमुच्छेदं भव्वमभव्वं च सुण्णमिदरं च । (36)
विण्णाणमविण्णाणं ण वि जुज्जदि असदि सब्भावे ॥37॥
कम्माणं फलमेक्को एक्को कज्जं तु णाणमथमेक्को । (37)
वेदयदि जीवरासी चेदगभावेण तिविहेण ॥38॥
सव्वे खलु कम्मफलं थावरकाया तसा हि कज्जजुदं । (38)
पाणित्तमदिक्कंता णाणं विंदंति ते जीवा ॥39॥
उवओगो खलु दुविहो णाणेण य दंसणेण संजुत्तो । (39)
जीवस्स सव्वकालं अणण्णभूदं वियाणीहि ॥40॥
आभिणिसुदोधिमणकेवलाणि णाणाणि पंचभेयाणि । (40)
कुमदिसूदविभंगाणि य तिण्णि वि णाणेहिं संजुत्ते ॥41॥
मदिणाणं पुण तिविहं उबलद्धी भावणं च उवओगो ।
तह एव चदुवियप्यं दंसणपुव्वं हवदि णाणं ॥42॥
सुदणाणं पुण णाणी भणंति लद्धी य भावणा चेव ।
उवओगणयवियप्पम णाणेण य वत्थु अत्थस्स ॥43॥
ओहिं तहेव घेप्पदु देसं परमं च ओहिसव्वं च ।
तिण्णिवि गुणेण णियमा भवेण देसं तहा णियदं ॥44॥
विउलमदी पुण णाणं अज्जवणाणं च दुविह मण्णाणं ।
एदे संजमलद्धी उवओगे अप्पमत्तस्स ॥45॥
णाणं णेयणिमित्तिं केवलणाणं ण होदि सुदणाणं ।
णेयं केवलणाणं णाणाणाणं च णत्थि केवलिणो ॥46॥
मिच्छत्ता अण्णाणं अविरदिभावो य भावावरणा ।
णेयं पडुच्च काले तह दुण्णय दुप्पमाणं च ॥47॥
दंसणमवि चक्खुजुदं अचक्खुजुदमवि य ओहिणा सहियं । (41)
अणिधणमणन्तविसयं केवलियं चावि पण्णत्तं ॥48॥
ण वियप्पदि णाणादो णाणी णाणाणि होंति णेगाणि । (42)
तम्हा दु विस्सरूवं भणियं दवियत्ति णाणीहिं ॥49॥
जदि हवदि दव्वदमण्णं गुणदो हि गुणा य दव्वदो अण्णे । (43)
दव्वाणंतियमहवा दव्वाभावं पकुव्वंति ॥50॥
अविभक्तमणण्णत्तं दव्वगुणाणं विभत्तमण्णत्तं । (44)
णेच्छन्ति णिच्चयण्हू तव्विवरीदं हि वा तेसिं ॥51॥
ववदेसा संठाणा संखा विसया य होंति ते बहुगा । (45)
ते तेसिमणण्णत्ते अण्णत्ते चावि विज्जन्ते ॥52॥
णाणं धणं च कुव्वदि धणिणं जह णाणिणं च दुविधेहिं । (46)
भण्णंति तह पुधत्तं एयत्तं चावि तच्चण्हू ॥53॥
णाणी णाणं च तहा अत्थंतरि दो दु अण्णमण्णस्स । (47)
दोण्हं अचेदणत्तं पसजदि सम्मं जिणावमदं ॥54॥
ण हि सो समवायादो अत्थंतरिदो दु णाणी । (48)
अण्णाणित्ति य वयणं एयत्तपसाधगं होदि ॥55॥
समवत्ती समवाओ अपुधब्भूदो य अजुदसिद्धो य । (49)
तम्हा दव्वगुणाणं अजुदा सिद्धित्ति णिदिट्ठा ॥56॥
वण्णरसगंधफासा परमाणुपरूविदा विसेसेहिं । (50)
दव्वादो य अणण्णा अण्णत्तपयासगा होंति ॥57॥
दंसणणाणाणि तहा जीवणिबद्धाणि णण्णभूदाणि । (51)
ववदेसदो पुधत्तं कुव्वन्ति हि णो सहावादो ॥58॥
जीवा अणाइणिहणा संता णंता य जीवभावादो । (52)
सब्भावदो अणंता पंचग्गगुणप्पहाणा य ॥59॥
एवं सदो विणासो असदो जीवस्स हवदि उप्पादो । (53)
इदि जिणवरेहिं भणियं अण्णोण्णविरुद्धमविरुद्धं ॥60॥
णेरइयतिरियमणुआ देवा इदि णामसंजुदा पयडी । (54)
कुव्वंति सदो णासं असदो भावस्स उप्पत्ती ॥61॥
उदयेण उवसमेण य खयेण दुहिं मिस्सिदेण परिणामे । (55)
जुत्ता ते जीवगुणा बहुसुदसत्थेसु वित्थिण्णा ॥62॥
कम्मं वेदयमाणो जीवो भावं करेदि जारिसयं । (56)
सो तस्स तेण कत्ता हवदित्ति य सासणे पढिदं ॥63॥
कम्मेण विणा उदयं जीवस्स ण विज्जदे उवसमं वा । (57)
खइयं खओवसमियं तम्हा भावं तु कम्मकदं ॥64॥
भावों जदि कम्मकदो आदा कम्मस्स होदि किह कत्ता । (58)
ण कुणदि अत्ता किंचिवि मुत्ता अण्णं सगं भावं ॥65॥
भावो कम्मणिमित्तो कम्मं पुण भावकरणं हवदि । (59)
ण दु तेसिं खलु कत्ता ण विणा भूदा दु कत्तारं ॥66॥
कुव्वं सगं सहावं अत्ता कत्ता सगस्स भावस्स । (60)
ण हि पोग्गलकम्माणं इदि जिणवयणं मुणेयव्वं ॥67॥
कम्मं पि सयं कुव्वदि सगेण भावेण सम्ममप्पाणं । (61)
जीवो वि य तारिसओ कम्मसहावेण भावेण ॥68॥
कम्मं कम्मं कुव्वदि जदि सो अप्पा करेदि अप्पाणं । (62)
किह तस्स फलं भुंजदि अप्पा कम्मं च देदि फलं ॥69॥
ओगाढगाढणिचिदो पोग्गलकायेंहिं सव्वदो लोगो । (63)
सुहुमेहिं बादरेहिं य णंताणंतेहिं विविहेहिं ॥70॥
अत्ता कुणदि सहावं तत्थ गया पोग्गला सहावेहिं । (64)
गच्छन्ति कम्मभावं अण्णोण्णागाहमवगाढा ॥71॥
जह पोग्गलदव्वाणं बहुप्पयारेहिं खंधणिव्वत्ती । (65)
अकदा परेहिं दिट्ठा तह कम्माणं वियाणाहि ॥72॥
जीवा पोग्गल काया अण्णोण्णागाढगहणपडिबद्धा । (66)
काले विजुज्जमाणा सुहदुक्खं दिंति भुंजंति ॥73॥
तम्हा कम्मं कत्ता भावेण हि संजुदोध जीवस्स । (67)
भोत्ता दु हवदि जीवो चिदगभावेण कम्मफलं ॥74॥
एवं कत्ता भोक्ता होज्जं अप्पा सगेहिं कम्मेहिं । (68)
हिंडदि पारमपारं संसारं मोहसंच्छण्णो ॥75॥
उवसंतखीणमोहो मग्गं जिणभासिदेय समुवगदो । (69)
णाणाणुमग्गचारी णिव्वाणपुरं वजदि धीरो ॥76॥
एक्को चेव महप्पा सो दुवियप्पो तिलक्खणों हवदि । (70)
चदुसंकमणो य भणिदो पंचग्गगुणप्पहाणो य ॥77॥
उछक्कावक्कमजुत्तो वजुत्तो सत्तभंगसव्भावों । (71)
अट्ठासवो णवत्थो जीवो दह ठाणिओ भणिओ ॥78॥
पयडिट्ठिदिअणुभागप्पदेसबंधेहिं सव्वदो मुक्को । (72)
उड्ढं गच्छदि सेसा विदिसावज्जं गदिं जंति ॥79॥
खंदा य खंददेसा खंदपदेसा य होंति परमाणू । (73)
इदि ते चदुव्वियप्पा पोग्गलकाया मुणेदव्वा ॥80॥
खंदं सयलसमत्थं तस्स दु अद्धं भणंति देसोत्ति । (74)
अद्धद्धं च पदेसो परमाणू चेव अविभागी ॥81॥
बादरसुहुमगदाणं खंदाणं पोग्गलोत्ति ववहारो । (75)
ते होंति छप्पयारा तेलोक्कं जेहिं णिप्पण्णं ॥82॥
पुढवी जलं च छाया चउरिंदियविसयकम्मपाओग्गा ।
कम्मातीदा एवं छ्ब्भेया पोग्गला होंती ॥83॥
सव्वेसिं खंदाणं जो अंतो तं वियाण परमाणू । (76)
सो सस्सदो असद्दो एक्को अविभागि मुत्तिभवो ॥84॥
आदेसमत्तमुत्तो धाउचउक्कस्स कारणं जो दु । (77)
सो णेओ परमाणू परिणामगुणो सयमसद्दो ॥85॥
सद्दो खंदप्पभवो खंदो परमाणुसंगसंघादो । (78)
पुट्ठेसु तेसु जायादि सद्दो उप्पादगो णियदो ॥86॥
णिच्चो णाणवगासो ण सावगासो पदेसदो भेत्ता । (79)
खंदाणं वि य कत्ता पविभत्ता कालसंखाणं ॥87॥
एयरसवण्णगंधं दो फासं सद्दकारणमसद्दं । (80)
खंदंतरिदं दव्वं परमाणु तं वियाणाहि ॥88॥
उवभोज्जमिंदिएहिं य इन्दियकाया मणो य कम्माणि । (81)
जं हवदि मुत्तिमण्णं तं सव्वं पोग्गलं जाणे ॥89॥
धम्मत्थिकायमसं अवण्णगंधं असद्दमप्फासं । (82)
लोगागाढं पुट्ठं पिहुलमसंखादियपदेसं ॥90॥
अगुरुगलघुगेहिं सया तेहिं अणंतेहिं परिणदं णिच्चं । (83)
गतिकिरियाजुत्ताणं कारणभूदं सयमकज्जं ॥91॥
उदयं जह मच्छाणं गमणाणुग्गहयरं हवदि लोए । (84)
तह जीवपुग्गलाणं धम्मं दव्वं वियाणीहि ॥92॥
जह हवदि धम्मदव्वं तह जाणेह दव्वमधमक्खं । (85)
ठिदिकिरियाजुत्ताणं कारणभूदं तु पुढवीव ॥93॥
जादो अलोगलोगो जेसिं सब्भावदो य गमणठिदी । (86)
दो वि य मया विभत्ता अविभत्ता लोयमेत्ता य ॥94॥
ण य गच्छदि धम्मत्थी गमणं ण करेदि अण्णदवियस्स । (87)
हवदि गदी स्स प्पसरो जीवाणं पोग्गलाणं च ॥95॥
विज्जदि जेसिं गमणं ठाणं पुण तेसिमेव संभवदि । (88)
ते सगपरिणामेहिं दु गमणं ठाणं च कुव्वंति ॥96॥
सव्वेसिं जीवाणं सेसाणं तह य पोग्गलाणं च । (89)
जं देदि विवरमखिलं तं लोए हवदि आगासं ॥97॥
जीवा पुग्गलकाया धम्माधम्मा य लोगदोणण्णा । (90)
तत्तो अणण्णमण्णं आयासं अंतवदिरित्तं ॥98॥
आयासं अवगासं गमणठिदिकारणेहिं देदि जदि । (91)
उड्ढंगदिप्पधाणा सिद्धा चिट्ठन्ति किध तत्थ ॥99॥
जम्हा उवरिट्ठाणं सिद्धाणं जिणवरेहिं पण्णत्तं । (92)
तम्हा गमणट्ठाणं आयासे जाण णत्थि त्ति ॥100॥
जदि हवदि गमणहेदु आयासं ठाणकारणं तेसिं । (93)
पसयदि अलोगहाणि लोगस्सय अंतपरिवड्ढी ॥101॥
तम्हा धम्माधम्मा गमणट्ठिदिकारणाणि णगासं । (94)
इदि जिणवरेहिं भणिदं लोगसहावं सुणंताणं ॥102॥
धम्माधम्मागासा अपुधब्भूदा समाणपरिमाणा । (95)
पुधगुवलद्धविसेसा करेंति एयत्तमण्णत्तं ॥103॥
आगासकालजीवा धम्माधम्मा य मुत्तिपरिहीणा । (96)
मुत्तं पुग्गलदव्वं जीवो खलु चेदणो तेसु ॥104॥
जीवा पुग्गलकाया सह सक्किरिया हवंति ण य सेसा । (97)
पुग्गलकरणा जीवा खंदा खलु कालकरणेहिं दु ॥105॥
जे खलु इन्दियगेज्झा विसया जीवेहिं हुन्ति ते मुत्ता । (98)
सेसं हवदि अमुत्तं चित्तं उभयं समादियदि ॥106॥
कालो परिणामभवो परिणामो दव्वकालसंभूदो । (99)
दोण्हं एस सहावो कालो खणभंगुरो णियदो ॥107॥
कालो त्ति य ववदेसो सब्भावपरूवगो हवदि णिच्चो । (100)
उप्पण्णप्पद्धंसी अवरो दीहंतरट्ठाई ॥108॥
एदे कालागासा धम्माधम्मा य पोग्गला जीवा । (101)
लब्भंति दव्वसण्णं कालस्स दु णत्थि कायत्तं ॥109॥
एवं पवयणसारं पंचत्थियसंगहं वियाणित्ता । (102)
जो मुयदि रागदोसे सो गाहदि दुक्खपरिमोक्खं ॥110॥
मुणिऊण एतदट्ठं तदणुगमणुज्जदो णिहणमोहो । (103)
पसमियरागद्दोसो हवदि हदपरावरो जीवो ॥111॥
अभिवंदिऊण सिरसा अपुणब्भवकारणं महावीरं । (104)
तेसिं पयत्थभंगं मग्गं मोक्खस्स वोच्छामि ॥112॥
सम्मत्तणाणजुत्तं चारित्तं रागदोसपरिहीणं । (105)
मोक्खस्स हवदि मग्गो भव्वाणं लद्धबुद्धीणं ॥113॥
एवं जिणपण्णत्ते सद्दहमाणस्स भावदो भावे ।
पुरिसस्साभिणिबोधे दंसणसद्दो हवदि जुत्ते ॥114॥
सम्मत्तं सद्दहणं भावाणं तेसिमधिगमो णाणं । (106)
चारित्तं समभावो विसयेसु विरूढ़मग्गाणं ॥115॥
जीवाजीवा भावा पुण्णं पावं च आसवं तेसिं । (107)
संवरणिज्जरबंधो मोक्खो य हवन्ति ते अट्ठा ॥116॥
जीवा संसारत्था णिव्वादा चेदणप्पगा दुविहा । (108)
उवओगलक्खणा वि य देहादेहप्पवीचारा ॥117॥
पुढवी य उदगमगणी वाउवणप्फदिजीवसंसिदा काया । (109)
देंति खलु मोहबहुलं फासं बहुगा वि ते तेसिं ॥118॥
तित्थावरतणुजोगा अणिलाणलकाइया य तेसु तसा ।
मणपरिणामविरहिदा जीवा एइंदिया णेया ॥119॥
एदे जीवणिकाया पंचविहा पुढविकाइयादीया । (110)
मणपरिणामविराहिदा जीवा एगेंदिया भणिया ॥120॥
अंडेसु पवड्ढंता गब्भत्था माणुसा य मुच्छगया । (111)
जारिसया तारिसया जीवा एगेंदिया णेया ॥121॥
संबुक्कमादुवाहा संखा सिप्पी अपादगा य किमी । (112)
जाणंति रसं फासं जे ते बेइंदिया जीवा ॥122॥
जूगागुंभीमक्कणपिपीलिया विच्छियादिया कीडा । (113)
जाणंति रसं फासं गंधं तेइंदिया जीवा ॥123॥
उद्दंमसयमक्खियमधुकरभमरा पतंगमादीया । (114)
रूपं रसं च गंधं फासं पुण ते वि जाणंति ॥124॥
सुरणरणारयतिरिया वण्णरसप्फासगंधसद्दण्हू । (115)
जलचरथलचरखचरा वलिया पचेंदिया जीवा ॥125॥
देवा चउण्णिकाया मणुया पुण कम्मभोगभूमीया । (116)
तिरिया बहुप्पयारा णेरइया पुढविभेयगदा ॥126॥
खीणे पुव्वणिबद्धे गदिणामे आउसे च ते वि खलु । (117)
पापुण्णंति य अण्णं गदिमाउस्सं सलेस्सवसा ॥127॥
एदे जीवणिकाया देहप्पविचारमस्सिदा भणिदा । (118)
देहविहूणा सिद्धा भव्वा संसारिणो अभव्वा य ॥128॥
ण हि इंदियाणि जीवा काया पुण छप्पयार पण्णत्ता । (119)
जं हवदि तेसु णाणं जीवो त्ति य तं परूवंति ॥129॥
जाणदि पस्सदि सव्वं इच्छदि सुक्खं विभेदि दुक्खादो । (120)
कुव्वदि हिदमहिदं वा भुंजदि जीवो फलं तेसिं ॥130॥
एवमभिगम्म जीवं अण्णेहिं वि पज्जएहिं बहुगेहिं । (121)
अभिगच्छदु अज्जीवं णाणंतरिदेहिं लिंगेहिं ॥131॥
आगासकालपुग्गलधम्माधम्मेसु णत्थि जीवगुणा । (122)
तेसिं अचेदणत्तं भणिदं जीवस्स चेदणदा ॥132॥
सुहदुक्खजाणणा वा हिदपरियम्मं च अहिदभीरुत्तं । (123)
जस्स ण विज्जदि णिच्चं तं समणा विंति अज्जीवं ॥133॥
संठाणा संघादा वण्णरसप्फासगंधसद्दा य । (124)
पोग्गलदव्वप्पभवा होंति गुणा पज्जया य बहू ॥134॥
अरसमरूवमगंधं अव्वत्तं चेदणागुणमसद्दं । (125)
जाण अलिंगग्गहणं जीवमणिद्दिट्ठसंठाणं ॥135॥
जो खलु संसारत्थो जीवो तत्तो दु होदि परिणामो । (126)
परिणामादो कम्मं कम्मादो होदि गदिसु गदी ॥136॥
गदिमधिगदस्स देहो देहादो इंदियाणि जायंते । (127)
तेहिं दु विसयग्गहणं तत्तो रागो व दोसो व ॥137॥
जायदि जीवस्सेवं भावो संसारचक्कवालम्मि । (128)
इदि जिणवरेहिं भणिदो अणादिणिधणो सणिधणो वा ॥138॥
मोहो रागो दोसो चित्तपसादो य जस्स भावम्मि । (129)
विजदि तस्स सुहो वा असुहो वा होदि परिणामो ॥139॥
सुहपरिणामो पुण्णं असुहो पावंति हवदि जीवस्स । (130)
दोण्हं पोग्गलमेत्तो भावो कम्पत्तणं पत्तो ॥140॥
जम्हा कम्मस्स फलं विसयं फासेहिं भुंजदे णियदं । (131)
जीवेण सुहं दुक्खं तम्हा कम्माणि मुत्ताणि ॥141॥
मुत्तो फासदि मुत्तं मुत्तो मुत्तेण बन्धमणुहवदि । (132)
जीवो मुत्तिविरहिदो गाहदि ते तेहिं उग्गहदि ॥142॥
रागो जस्स पसत्थो अणुकंपासंसिदो य परिणामो । (133)
चित्ते णत्थि कलूस्सं पुण्णं जीवस्स आसवदि ॥143॥
अरहंतसिद्धसाहुसु भत्ती धम्मम्मि जा य खलु चेट्ठा । (134)
अणुगमणं पि गुरूणं पसत्थरागो त्ति वुच्चंति ॥144॥
तिसिदं वुभुक्खिदं वा दुहिदं दट्ठूण जो दु दुहिद मणो । (135)
पडिवज्जदि तं किवया तस्सेसा होदि अणुकंपा ॥145॥
कोधो व जदा माणो माया लोहो व चित्तमासेज्ज । (136)
जीवस्स कुणदि खोहं कलुसो त्ति य तं बुधा वेंति ॥146॥
चरिया पमादबहुला कालुस्सं लोलदा य विसयेसु । (137)
परपरितावपवादो पावस्स य आसवं कुणदि ॥147॥
सण्णाओ य तिलेस्सा इंदियवसदा य अट्टरुद्दाणि । (138)
णाणं च दुप्पउत्तं मोहो पावप्पदा होंति ॥148॥
इंदियकसायसण्णा णिग्गहिदा जेहिं सुट्ठुमग्गम्मि । (139)
जावत्तावत्तेसिं पिहिदं पावासवच्छिद्दं ॥149॥
जस्स ण विज्जदि रागो दोसो मोहो व सव्वदव्वेसु । (140)
णासवदि सुहं असुहं समसुहदुक्खस्स भिक्खुस्स ॥150॥
जस्स जदा खलु पुण्णं जोगे पावं च णत्थि विरदस्स । (141)
संवरणं तस्स तदा सुहासुहकदस्स कम्मस्स ॥151॥
संवरजोगेहिं जुदो तवेहिं जो चिट्ठदे बहुविहेहिं । (142)
कम्माणं णिज्जरणं बहुगाणं कुणदि सो णियदं ॥152॥
जो संवरेण जुत्तो अप्पट्ठपसाहगो हि अप्पाणं । (143)
मुणिदूण झादि णियदं णाणं सो संधुणोदि कम्मरयं ॥153॥
जस्स ण विज्जदि रागो दोसो मोहो व जोगपरिणामो । (144)
तस्स सुहासुहदहणो झाणमओ जायदे अगणी ॥154॥
जं सुहमसुहमुदिण्णं भावं रत्तो करेदि जदि अप्पा । (145)
सो तेण हवदि बंधो पोग्गलकम्मेण विविहेण ॥155॥
जोगणिमित्तं गहणं जोगो मणवयणकायसंभूदो । (146)
भावणिमित्तो बंधो भावो रदिरागदोसमोहजुदो ॥156॥
हेदु हि चदुव्वियप्पो अट्ठवियप्पस्स कारणं भणियं । (148)
तेसिं पि य रागादी तेसिमभावे ण बज्झंते ॥157॥
हेदुमभावे णियमा जायदि णाणिस्स आसवणिरोधो । (148)
आसवभावेण बिणा जायदि कम्मस्स दु णिरोधो ॥158॥
कम्मस्साभावेण य सव्वण्हू सव्वलोगदरसी य । (149)
पावदि इंदियरहिदं अव्वाबाहं सुहमणंतं ॥151॥
दंसणणाणसमग्गं झाणं णो अण्णदव्वसंजुत्तं । (150)
जायदि णिज्जरहेदू सभावसहिदस्स साहुस्स ॥160॥
जो संवरेण जुत्तो णिज्जरमाणोय सव्वकम्माणि । (151)
ववगदवेदाउस्सो मुयदि भवं तेण सो मोक्खो ॥161॥
जीवसहाओ णाणं अप्पडिहददंसणं अणण्णमयं । (152)
चरियं च तेसु णियदं अत्थित्तमणिंदियं भणियं ॥162॥
जीवो सहावणियदो अणियदगुणपज्जओध परसमओ । (153)
जदि कुणदि सगं समयं पब्भस्सदि कम्मबंधादो ॥163॥
जो परदव्वम्हि सुहं असुहं रायेण कुणदि जदि भावं । (154)
सो सगचरित्तभट्ठो परचरियचरो हवदि जीवो ॥164॥
आसवदि जेण पुण्णं पावं वा अप्पणोथ भावेण । (155)
सो तेण परचरित्तो हवदित्ति जिणा परूवेंति ॥165॥
सो सव्वसंगमुक्को णण्णमणो अप्पणं सहावेण । (156)
जाणदि पस्सदि णियदं सो सगचरियं चरदि जीवो ॥166॥
चरियं सगं सो जो परदव्वप्पभावरहिदप्पा । (157)
दंसणणाणवियप्पं अवियप्पं चरदि अप्पादो ॥167॥
धम्मादीसद्दहणं सम्मत्तं णाणमंगपुव्वगदं । (158)
चिट्ठा तवं हि चरिया ववहारो मोक्खमग्गोत्ति ॥168॥
णिच्छयणयेण भणिदो तिहि तेहिं समाहिदो हु जो अप्पा । (159)
ण कुणदि किंचिवि अण्णं ण मुयदि मोक्खमग्गोत्ति ॥169॥
जो चरदि णादि पेच्छदि अप्पाणं अप्पणा अणण्णमयं । (160)
सो चारित्तं णाणं दंसणमिदि णिच्छिदो होदि ॥170॥
जेण विजाणदि सव्वं पेच्छदि सो तेण सोक्खमणुभवदि । (161)
इदि तं जाणदि भवियो अभव्वसत्तो ण सद्दहदि ॥171॥
दंसणणाणचरित्ताणि मोक्खमग्गोत्ति सेविदव्वाणि । (162)
साधूहिं इदं भणिदं तेहिं दु बंधो वा मोक्खो वा ॥172॥
अण्णाणादो णाणी जदि मण्णदि सुद्धसंपयोगादो । (163)
हवदित्ति दुक्खमोक्खो परसमयरदो हवदि जीवो ॥173॥
अरहंतसिद्धचेदियपवयणगणणाणभीत्तिसंपण्णों । (164)
बंधदि पुण्णं बहुसो ण दु सो कम्मक्खयं कुणदि ॥174॥
जस्स हिदयेणुमेत्तं वा परदव्वम्हि विज्जदे रागो । (165)
सो ण विजाणदि समयं सगस्स सव्वागमधरोवि ॥175॥
धरिदुं जस्स ण सक्को चित्तंभामो बिणा दु अप्पाणं । (166)
रोधो तस्स ण विज्जदि सुहासुहकदस्स कम्मस्स ॥176॥
तम्हा णिव्वुदिकामो णिस्संगो णिम्ममो य भविय पुणॊ । (167)
सिद्धेसु कुणदि भत्तिं णिव्वाणं तेण पप्पेदि ॥177॥
सपदत्थं तित्थयरं अभिगदबुद्धिस्स सुत्तरोचिस्स । (168)
दूरयरं णिव्वाणं संजमतवसंपजुत्तस्स ॥178॥
अरहंतसिद्धचेदियपवयणभत्तो परेण णियमेण । (169)
जो कुणदि तवोकम्मं सो सुरलोगं समादियदि ॥179॥
तम्हा णिव्वुदिकामो रागं सव्वत्थ कुणदु मा किंचि । (170)
सो तेण वीदारागो भवियो भवसायरं तरदि ॥180॥
मग्गप्पभावणट्ठं पवयणभत्तिप्पचोदिदेण मया । (171)
भणियं पवयणसारं पंचत्थीयसंगहं सुत्तं ॥181॥