पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 129 - समय-व्याख्या - हिंदी: Difference between revisions
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<p>यह, पुण्य-पाप के योग्य भाव के स्वभाव का (स्वरूप का) कथन है।</p> | <p>यह, पुण्य-पाप के योग्य भाव के स्वभाव का (स्वरूप का) कथन है।</p> | ||
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<p>यहाँ, <ul><li>दर्शन-मोहनीय के विपाक से जो कलुषित परिणाम वह | <p>यहाँ, <ul><li>दर्शन-मोहनीय के विपाक से जो कलुषित परिणाम वह <span class="DarkFont">मोह</span> है, <li>विचित्र (अनेक-प्रकार के) चारित्र-मोहनीय का विपाक जिसका आश्रय (निमित्त) है ऐसी प्रीति-अप्रीति वह <span class="DarkFont">राग-द्वेष</span> है, <li>उसी के (चारित्र-मोहनीय के ही) मंद उदय से होने वाले जो विशुद्ध परिणाम वह <sup>१</sup><span class="DarkFont">चित्त-प्रसाद</span> परिणाम (मन की प्रसन्नता-रूप परिणाम) है । </ul>इस प्रकार यह (मोह, राग, द्वेष अथवा चित्त-प्रसाद) जिसके भाव में है, उसे अवश्य शुभ अथवा अशुभ परिणाम है । उसमें, जहाँ प्रशस्त राग अथवा चित्त-प्रसाद है वहाँ शुभ-परिणाम है और जहाँ मोह, द्वेष तथा अप्रशस्त राग है वहाँ अशुभ-परिणाम है ॥१२९॥</p> | ||
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<p><span class=shortFont><sup>१</sup>प्रसाद= प्रसन्नता, विशुद्धता, उज्ज्वलता ।</span></p> | <p><span class=shortFont><sup>१</sup>प्रसाद= प्रसन्नता, विशुद्धता, उज्ज्वलता ।</span></p> | ||
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Latest revision as of 16:51, 24 August 2021
यह, पुण्य-पाप के योग्य भाव के स्वभाव का (स्वरूप का) कथन है।
यहाँ,
- दर्शन-मोहनीय के विपाक से जो कलुषित परिणाम वह मोह है,
- विचित्र (अनेक-प्रकार के) चारित्र-मोहनीय का विपाक जिसका आश्रय (निमित्त) है ऐसी प्रीति-अप्रीति वह राग-द्वेष है,
- उसी के (चारित्र-मोहनीय के ही) मंद उदय से होने वाले जो विशुद्ध परिणाम वह १चित्त-प्रसाद परिणाम (मन की प्रसन्नता-रूप परिणाम) है ।
१प्रसाद= प्रसन्नता, विशुद्धता, उज्ज्वलता ।