पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 105.1 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p><span class="AnvayArth">एवं</span> पूर्वोक्त प्रकार से, <span class="AnvayArth">जिणपण्णत्ते</span> जिनप्रज्ञप्त, वीतराग-सर्वज्ञ प्रणीत का, <span class="AnvayArth">सद्दहमाणस्स</span> श्रद्धान करने वाले के, <span class="AnvayArth">भावदो</span> रुचिरूप परिणाम से । कर्मता को प्राप्त किनका श्रद्धान करने वाले के ? <span class="AnvayArth">भावे</span> तीन-लोक, तीन-काल-वर्ती विषय-भूत समस्त पदार्थ-गत सामान्य-विशेष स्वरूप को जानने में समर्थ केवल-दर्शन-ज्ञान लक्षण वाले आत्म-द्रव्य आदि समस्त पदार्थों का, भावों का श्रद्धान करने वाले के । श्रद्धान करने वाले किसके ? <span class="AnvayArth">पुरिसस्स</span> भव्य जीव-रूप पुरुष के । क्या होने पर किसमें ? <span class="AnvayArth">आभिणिबोधे</span> मति-ज्ञान होने पर अथवा मति-ज्ञान पूर्वक श्रुत-ज्ञान होने पर, <span class="AnvayArth">दंसणसद्दो</span> यह पुरुष दार्शनिक / दर्शन-युक्त है ऐसा शब्द <span class="AnvayArth">हवदि</span> होता है । वह कैसा है ? <span class="AnvayArth">जुत्ते</span> युक्त / उचित है ।</p> | <p><span class="AnvayArth">[एवं]</span> पूर्वोक्त प्रकार से, <span class="AnvayArth">[जिणपण्णत्ते]</span> जिनप्रज्ञप्त, वीतराग-सर्वज्ञ प्रणीत का, <span class="AnvayArth">[सद्दहमाणस्स]</span> श्रद्धान करने वाले के, <span class="AnvayArth">[भावदो]</span> रुचिरूप परिणाम से । कर्मता को प्राप्त किनका श्रद्धान करने वाले के ? <span class="AnvayArth">[भावे]</span> तीन-लोक, तीन-काल-वर्ती विषय-भूत समस्त पदार्थ-गत सामान्य-विशेष स्वरूप को जानने में समर्थ केवल-दर्शन-ज्ञान लक्षण वाले आत्म-द्रव्य आदि समस्त पदार्थों का, भावों का श्रद्धान करने वाले के । श्रद्धान करने वाले किसके ? <span class="AnvayArth">[पुरिसस्स]</span> भव्य जीव-रूप पुरुष के । क्या होने पर किसमें ? <span class="AnvayArth">[आभिणिबोधे]</span> मति-ज्ञान होने पर अथवा मति-ज्ञान पूर्वक श्रुत-ज्ञान होने पर, <span class="AnvayArth">[दंसणसद्दो]</span> यह पुरुष दार्शनिक / दर्शन-युक्त है ऐसा शब्द <span class="AnvayArth">[हवदि]</span> होता है । वह कैसा है ? <span class="AnvayArth">[जुत्ते]</span> युक्त / उचित है ।</p> | ||
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<p>यहाँ सूत्र में यद्यपि कभी निर्विकल्प समाधि के समय निर्विकार शुद्धात्म-रुचि-रूप निश्चय-सम्यक्त्व को स्पर्श कर रहा है / प्राप्त हुआ है; तथापि प्रचुर रूप से बहिरंग पदार्थ रुचि-रूप जो व्यवहार सम्यक्त्व है; उसकी ही वहाँ मुख्यता है । वहाँ उसकी ही मुख्यता कैसे है ? 'विवक्षित (जो कहा जा रहा है वह) मुख्य होता है' -- ऐसा वचन होने से वहाँ उसकी ही मुख्यता है । विवक्षित ही मुख्य कैसे है ? व्यवहार-मोक्षमार्ग के व्याख्यान का प्रस्ताव / प्रकरण / प्रसंग होने से वह ही मुख्य है, ऐसा भावार्थ है ॥११४॥</p> | <p>यहाँ सूत्र में यद्यपि कभी निर्विकल्प समाधि के समय निर्विकार शुद्धात्म-रुचि-रूप निश्चय-सम्यक्त्व को स्पर्श कर रहा है / प्राप्त हुआ है; तथापि प्रचुर रूप से बहिरंग पदार्थ रुचि-रूप जो व्यवहार सम्यक्त्व है; उसकी ही वहाँ मुख्यता है । वहाँ उसकी ही मुख्यता कैसे है ? 'विवक्षित (जो कहा जा रहा है वह) मुख्य होता है' -- ऐसा वचन होने से वहाँ उसकी ही मुख्यता है । विवक्षित ही मुख्य कैसे है ? व्यवहार-मोक्षमार्ग के व्याख्यान का प्रस्ताव / प्रकरण / प्रसंग होने से वह ही मुख्य है, ऐसा भावार्थ है ॥११४॥</p> |
Revision as of 17:06, 24 August 2021
[एवं] पूर्वोक्त प्रकार से, [जिणपण्णत्ते] जिनप्रज्ञप्त, वीतराग-सर्वज्ञ प्रणीत का, [सद्दहमाणस्स] श्रद्धान करने वाले के, [भावदो] रुचिरूप परिणाम से । कर्मता को प्राप्त किनका श्रद्धान करने वाले के ? [भावे] तीन-लोक, तीन-काल-वर्ती विषय-भूत समस्त पदार्थ-गत सामान्य-विशेष स्वरूप को जानने में समर्थ केवल-दर्शन-ज्ञान लक्षण वाले आत्म-द्रव्य आदि समस्त पदार्थों का, भावों का श्रद्धान करने वाले के । श्रद्धान करने वाले किसके ? [पुरिसस्स] भव्य जीव-रूप पुरुष के । क्या होने पर किसमें ? [आभिणिबोधे] मति-ज्ञान होने पर अथवा मति-ज्ञान पूर्वक श्रुत-ज्ञान होने पर, [दंसणसद्दो] यह पुरुष दार्शनिक / दर्शन-युक्त है ऐसा शब्द [हवदि] होता है । वह कैसा है ? [जुत्ते] युक्त / उचित है ।
यहाँ सूत्र में यद्यपि कभी निर्विकल्प समाधि के समय निर्विकार शुद्धात्म-रुचि-रूप निश्चय-सम्यक्त्व को स्पर्श कर रहा है / प्राप्त हुआ है; तथापि प्रचुर रूप से बहिरंग पदार्थ रुचि-रूप जो व्यवहार सम्यक्त्व है; उसकी ही वहाँ मुख्यता है । वहाँ उसकी ही मुख्यता कैसे है ? 'विवक्षित (जो कहा जा रहा है वह) मुख्य होता है' -- ऐसा वचन होने से वहाँ उसकी ही मुख्यता है । विवक्षित ही मुख्य कैसे है ? व्यवहार-मोक्षमार्ग के व्याख्यान का प्रस्ताव / प्रकरण / प्रसंग होने से वह ही मुख्य है, ऐसा भावार्थ है ॥११४॥
इसप्रकार नव पदार्थ प्रतिपादक द्वितीय महाधिकार में व्यवहार मोक्षमार्ग के कथन की मुख्यता वाली चार गाथाओं द्वारा प्रथम अन्तराधिकार पूर्ण हुआ ।