समयसार - गाथा 337: Difference between revisions
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<div class="PravachanText">तम्हा ण को वि जीवो अबंभचारी दु अम्ह | <div class="PravachanText"><p><strong>तम्हा ण को वि जीवो अबंभचारी दु अम्ह उवदेसे।जम्हा कम्मं चेव हि कम्मं अहिलसदि इदि भणदं।।337।।</strong></p> | ||
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<p><strong>जीव के अपरिणयितृत्व पर आपत्ति</strong>―जब कर्म भी अभिलाषा करता तब हमारे सिद्धांत में कोई जीव अब्रह्मचारी नहीं है ऐसा शंकाकार जीव को एकांतत: अपरिणामी सिद्ध कर रहा है। जीव स्वरूप निश्चल है। ऐसा निश्चल है कि उसमें कोई तरंग नहीं उठती। सारा नृत्य यह प्रकृति का हो रहा है पर जैन सिद्धांत तो प्रत्येक सत को परिणमता हुआ मानता है यदि आत्मा विभाव परिणाम नहीं करता, शुभ अशुभ परिणाम नहीं करता, प्रकृति ही सब कुछ करती तो आत्मा ने क्या किया ? कुछ नहीं किया। यदि आत्मा ने कुछ नहीं किया तो अपरिणामी हुआ और जो अपरिणामी हैं वे सब असत् हैं। कर्म के उदय से अभिलाषा तो होती है पर जीव में अभिलाषा होती है, कर्म ही अभिलाषा नहीं करते, कर्म जड़ हैं, ऐसे चिदाभास की परिणति कर्म में नहीं होती। लो यहां कुछ नहीं किया जाता इस पर आपत्ति आ रही है और घर में भी कुछ न करने पर लड़ाई होती है, हम ज्यादा काम करती हैं, यह बैठी रहती हैं ऐसी लड़ाईयाँ होती हैं। यहां यह बता रहे है कि यदि कुछ काम न करे तो पदार्थ का विनाश हो जाय आगे यह सांख्यानुयायी कह रहा है।</p> | |||
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Latest revision as of 12:32, 20 September 2021
तम्हा ण को वि जीवो अबंभचारी दु अम्ह उवदेसे।जम्हा कम्मं चेव हि कम्मं अहिलसदि इदि भणदं।।337।।
जीव के अपरिणयितृत्व पर आपत्ति―जब कर्म भी अभिलाषा करता तब हमारे सिद्धांत में कोई जीव अब्रह्मचारी नहीं है ऐसा शंकाकार जीव को एकांतत: अपरिणामी सिद्ध कर रहा है। जीव स्वरूप निश्चल है। ऐसा निश्चल है कि उसमें कोई तरंग नहीं उठती। सारा नृत्य यह प्रकृति का हो रहा है पर जैन सिद्धांत तो प्रत्येक सत को परिणमता हुआ मानता है यदि आत्मा विभाव परिणाम नहीं करता, शुभ अशुभ परिणाम नहीं करता, प्रकृति ही सब कुछ करती तो आत्मा ने क्या किया ? कुछ नहीं किया। यदि आत्मा ने कुछ नहीं किया तो अपरिणामी हुआ और जो अपरिणामी हैं वे सब असत् हैं। कर्म के उदय से अभिलाषा तो होती है पर जीव में अभिलाषा होती है, कर्म ही अभिलाषा नहीं करते, कर्म जड़ हैं, ऐसे चिदाभास की परिणति कर्म में नहीं होती। लो यहां कुछ नहीं किया जाता इस पर आपत्ति आ रही है और घर में भी कुछ न करने पर लड़ाई होती है, हम ज्यादा काम करती हैं, यह बैठी रहती हैं ऐसी लड़ाईयाँ होती हैं। यहां यह बता रहे है कि यदि कुछ काम न करे तो पदार्थ का विनाश हो जाय आगे यह सांख्यानुयायी कह रहा है।