वैयधिकरण्य: Difference between revisions
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<span class="GRef"> सप्तभंगीतरंगिणी/82/1 </span><span class="SanskritText">अस्तित्वस्याधिकरणमन्यन्नास्तित्वस्याधिकरणमन्यदित्यस्तित्वनास्तित्वयोर्वैयधिकरण्यम्। तच्च विभिन्नकरणवृत्तित्वम्। </span>= <span class="HindiText">अस्तित्व का अधिकरण अन्य होता है और नास्तित्व का अन्य होता है, इस रीति से अस्तित्व और नास्तित्व का वैयधिकरण्य है। वैयधिकरण्य भिन्न-भिन्न अधिकरण में वृत्तित्वरूप है। [अर्थात् इस अनेकांत वाद में अस्तित्व और नास्तित्व दोनों एक ही अधिकरण में हैं। इसलिए नैयायिक लोग इस पर वैयधिकरण्य नाम का दोष लगाते हैं।] </span></p> | |||
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श्लोकवार्तिक/4/1/33/ न्या./459/551/16 पर भाषाकार द्वारा उद्धृतयुगपदनेकत्रावस्थितिर्वैयधिकरण्यम्। = एक वस्तु में एक साथ दो विरोधी धर्मों के स्वीकार करने से, नैयायिक लोग अनेकांतवादियों पर वैयधिकरण्य दोष उठाते हैं।
सप्तभंगीतरंगिणी/82/1 अस्तित्वस्याधिकरणमन्यन्नास्तित्वस्याधिकरणमन्यदित्यस्तित्वनास्तित्वयोर्वैयधिकरण्यम्। तच्च विभिन्नकरणवृत्तित्वम्। = अस्तित्व का अधिकरण अन्य होता है और नास्तित्व का अन्य होता है, इस रीति से अस्तित्व और नास्तित्व का वैयधिकरण्य है। वैयधिकरण्य भिन्न-भिन्न अधिकरण में वृत्तित्वरूप है। [अर्थात् इस अनेकांत वाद में अस्तित्व और नास्तित्व दोनों एक ही अधिकरण में हैं। इसलिए नैयायिक लोग इस पर वैयधिकरण्य नाम का दोष लगाते हैं।]