अयुतसिद्ध: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/5/38/309 </span>पर उद्धृत–<span class="PrakritText">गुण इदि दव्वविहाणं दव्वविकारो हि पज्जवो भणिदो। तेहि अणूणं दव्वं अजुपदसिद्धं हवे णिच्चं।</span> =<span class="HindiText">द्रव्य में भेद करने वाले धर्म को गुण और द्रव्य के विकार को पर्याय कहते हैं। द्रव्य इन दोनों से युक्त होता है। तथा वह '''अयुतसिद्ध''' और नित्य होता है।</span><p> | <p><span class="GRef"> सर्वार्थसिद्धि/5/38/309 </span>पर उद्धृत–<span class="PrakritText">गुण इदि दव्वविहाणं दव्वविकारो हि पज्जवो भणिदो। तेहि अणूणं दव्वं अजुपदसिद्धं हवे णिच्चं।</span> =<span class="HindiText">द्रव्य में भेद करने वाले धर्म को गुण और द्रव्य के विकार को पर्याय कहते हैं। द्रव्य इन दोनों से युक्त होता है। तथा वह '''अयुतसिद्ध''' और नित्य होता है।</span></p> | ||
<span class="HindiText"> अधिक जानकारी के लिए देखें [[ द्रव्य ]]।</span> | |||
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Latest revision as of 07:14, 8 November 2022
सर्वार्थसिद्धि/5/38/309 पर उद्धृत–गुण इदि दव्वविहाणं दव्वविकारो हि पज्जवो भणिदो। तेहि अणूणं दव्वं अजुपदसिद्धं हवे णिच्चं। =द्रव्य में भेद करने वाले धर्म को गुण और द्रव्य के विकार को पर्याय कहते हैं। द्रव्य इन दोनों से युक्त होता है। तथा वह अयुतसिद्ध और नित्य होता है।
अधिक जानकारी के लिए देखें द्रव्य ।