अपरविदेह: Difference between revisions
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<p class="HindiText">1. सुमेरु पर्वतके पश्चिममें स्थित गंधमालिनी आदि 16 क्षेत्र अपर या पश्चिम विदेह कहलाते हैं-देखें [[ लोक#5 | लोक - 5]]। <br> | |||
2. नील पर्वतस्थ एक कूट व उसके रक्षक देवका नाम भी अपरविदेह है-देखें [[ लोक#5 | लोक - 5]]।</p> | |||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<div class="HindiText"> <p> नील कुलाचल के नौ कूटों में सातवाँ कूट । इसकी ऊँचाई और मूल की चौड़ाई सौ योजन, मध्य की चौड़ाई पचहत्तर योजन और ऊर्ध्व भाग की चौड़ाई पचास योजन है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.90, 99-100 </span>देखें [[ नील ]]</p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> नील कुलाचल के नौ कूटों में सातवाँ कूट । इसकी ऊँचाई और मूल की चौड़ाई सौ योजन, मध्य की चौड़ाई पचहत्तर योजन और ऊर्ध्व भाग की चौड़ाई पचास योजन है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#90|हरिवंशपुराण - 5.90]], [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_5#99|5.99-100]] </span>देखें [[ नील ]]</p> | ||
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Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
1. सुमेरु पर्वतके पश्चिममें स्थित गंधमालिनी आदि 16 क्षेत्र अपर या पश्चिम विदेह कहलाते हैं-देखें लोक - 5।
2. नील पर्वतस्थ एक कूट व उसके रक्षक देवका नाम भी अपरविदेह है-देखें लोक - 5।
पुराणकोष से
नील कुलाचल के नौ कूटों में सातवाँ कूट । इसकी ऊँचाई और मूल की चौड़ाई सौ योजन, मध्य की चौड़ाई पचहत्तर योजन और ऊर्ध्व भाग की चौड़ाई पचास योजन है । हरिवंशपुराण - 5.90, 5.99-100 देखें नील