अप्रतिपाती: Difference between revisions
From जैनकोष
Shilpa jain (talk | contribs) No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
(2 intermediate revisions by the same user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
<p class="HindiText"><b>1. अप्रतिपाती अवधिज्ञान</b></p> | |||
<span class="GRef"> धवला 13/5,5,56/295/1 </span><p class="PrakritText">जमोहिणाणमुप्पण्णं संतं णिम्मूलदो विणस्सदि तं सप्पडिवादी णाम। ...जमोहिणाणं संतं केवलणाणेण समुप्पण्णे चेव विणस्सदि, अण्णहा विणस्सदि, तमप्पडिवादी णाम।</p> | |||
<p class="HindiText">= जो अवधिज्ञान उत्पन्न होकर निर्मूल विनाश को प्राप्त होता है वह सप्रतिपाती अवधिज्ञानी उत्पन्न होकर निर्मूल विनाश को प्राप्त होता है वह सप्रतिपाती अवधिज्ञान है। जीव अवधिज्ञान उत्पन्न होकर केवलज्ञान के उत्पन्न होने पर ही विनष्ट होता है अन्यथा विनष्ट नहीं होता वह '''अप्रतिपाती''' अवधिज्ञानी है।</p> | |||
<p class="HindiText">देखें [[ अवधिज्ञान#6 | अवधिज्ञान - 6]]।</p> | |||
<br> | |||
<p class="HindiText"><b>2. अप्रतिपाती मनःपर्यय ज्ञान</b>-देखें [[मन:पर्यय#2 | मन:पर्यय - 2]]।</p> | |||
<p class="HindiText">ऋजुमति मन:पर्ययज्ञान कषाय के उदयसहित हीनमान चारित्रवालों के होता है और विपुलमति विशिष्ट प्रकार के प्रवर्द्धमान चारित्रवालों के। ऋजुमति प्रतिपाती है अर्थात् अचरम देहियों के भी संभव है, पर विपुलमति '''अप्रतिपाती''' है अर्थात् चरम देहियों के ही संभव है।</p> | |||
<noinclude> | <noinclude> |
Latest revision as of 19:40, 24 December 2022
1. अप्रतिपाती अवधिज्ञान
धवला 13/5,5,56/295/1
जमोहिणाणमुप्पण्णं संतं णिम्मूलदो विणस्सदि तं सप्पडिवादी णाम। ...जमोहिणाणं संतं केवलणाणेण समुप्पण्णे चेव विणस्सदि, अण्णहा विणस्सदि, तमप्पडिवादी णाम।
= जो अवधिज्ञान उत्पन्न होकर निर्मूल विनाश को प्राप्त होता है वह सप्रतिपाती अवधिज्ञानी उत्पन्न होकर निर्मूल विनाश को प्राप्त होता है वह सप्रतिपाती अवधिज्ञान है। जीव अवधिज्ञान उत्पन्न होकर केवलज्ञान के उत्पन्न होने पर ही विनष्ट होता है अन्यथा विनष्ट नहीं होता वह अप्रतिपाती अवधिज्ञानी है।
देखें अवधिज्ञान - 6।
2. अप्रतिपाती मनःपर्यय ज्ञान-देखें मन:पर्यय - 2।
ऋजुमति मन:पर्ययज्ञान कषाय के उदयसहित हीनमान चारित्रवालों के होता है और विपुलमति विशिष्ट प्रकार के प्रवर्द्धमान चारित्रवालों के। ऋजुमति प्रतिपाती है अर्थात् अचरम देहियों के भी संभव है, पर विपुलमति अप्रतिपाती है अर्थात् चरम देहियों के ही संभव है।