अशुद्धोपयोग: Difference between revisions
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< | <span class="GRef">प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 156 </span><p class="SanskritText">उपयोगो हि जीवस्य परद्रव्यकारणमशुद्धः। स तु विशुद्धिसंक्लेशरूपोपरागवशात् शुभाशुभेनोपात्तद्वैविध्यः।</p> | ||
<p class="HindiText">= जीव का परद्रव्य के संयोग का कारण अशुद्ध उपयोग है। और वह विशुद्धि तथा संक्लेश रूप उपराग के कारण शुभ और अशुभ रूप से द्विविधता को प्राप्त होता है।</p> | <p class="HindiText">= जीव का परद्रव्य के संयोग का कारण ही अशुद्ध उपयोग कहलाता है। और वह विशुद्धि तथा संक्लेश रूप उपराग के कारण शुभ और अशुभ रूप से द्विविधता को प्राप्त होता है।</p> | ||
<p>अधिक जानकारी के लिए देखें [[उपयोग]]</p> | |||
<p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिए देखें [[उपयोग]]</p> | |||
Latest revision as of 10:56, 29 December 2022
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 156
उपयोगो हि जीवस्य परद्रव्यकारणमशुद्धः। स तु विशुद्धिसंक्लेशरूपोपरागवशात् शुभाशुभेनोपात्तद्वैविध्यः।
= जीव का परद्रव्य के संयोग का कारण ही अशुद्ध उपयोग कहलाता है। और वह विशुद्धि तथा संक्लेश रूप उपराग के कारण शुभ और अशुभ रूप से द्विविधता को प्राप्त होता है।
अधिक जानकारी के लिए देखें उपयोग