कर्मप्रकृति: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> कर्मों की प्रकृतियाँ ये एक सौ अड़तालीस हैं इन्हीं के वशीभूत जीव जन्म,जरा,मरण,रोग,दुःख और सुख संसार में प्राप्त कर रहे हैं</br><span class="GRef"> </span> महापुराण 62.312-314,67-6 | |||
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Latest revision as of 23:08, 5 October 2022
सिद्धांतकोष से
बंध का भेद—देखें प्रकृतिबंध , श्रुतज्ञान का एक अंग—देखें परिशिष्ट - 1
पुराणकोष से
कर्मों की प्रकृतियाँ ये एक सौ अड़तालीस हैं इन्हीं के वशीभूत जीव जन्म,जरा,मरण,रोग,दुःख और सुख संसार में प्राप्त कर रहे हैं
महापुराण 62.312-314,67-6