अचौर्याणुव्रत: Difference between revisions
From जैनकोष
Anita jain (talk | contribs) mNo edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="HindiText"> <p> पांच अणुव्रतों में तीसरा अणुव्रत । ग्राम, नगर आदि में दूसरों की गिरी हुई गुमी हुई या भूलकर रखी हुई वस्तु को ग्रहण नहीं करना । इस अणुव्रत के पांच अतीचार होते हैं― 1. स्तेनप्रयोग-कृत, कारित और अनुमोदना से चोर को चोरी में प्रवृत करना । 2. तदाहृतादान― चोरी की वस्तुएँ खरीदना । 3. विरुद्धराज्यातिक्रम-राजकीय आज्ञा विरुद्ध क्रय-विक्रय करना । 4 हीनाधिकमानोन्मान-कम और अधिक नापना, तौलना । 5. प्रतिरूपकव्यवहार-कृत्रिम मिलावट कर दूसरों को ठगना । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 58.171-173 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.42 </span></p> | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> पांच अणुव्रतों में तीसरा अणुव्रत । ग्राम, नगर आदि में दूसरों की गिरी हुई गुमी हुई या भूलकर रखी हुई वस्तु को ग्रहण नहीं करना । इस अणुव्रत के पांच अतीचार होते हैं― 1. स्तेनप्रयोग-कृत, कारित और अनुमोदना से चोर को चोरी में प्रवृत करना । 2. तदाहृतादान― चोरी की वस्तुएँ खरीदना । 3. विरुद्धराज्यातिक्रम-राजकीय आज्ञा विरुद्ध क्रय-विक्रय करना । 4 हीनाधिकमानोन्मान-कम और अधिक नापना, तौलना । 5. प्रतिरूपकव्यवहार-कृत्रिम मिलावट कर दूसरों को ठगना । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_58#171|हरिवंशपुराण - 58.171-173]] </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.42 </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Latest revision as of 14:39, 27 November 2023
पांच अणुव्रतों में तीसरा अणुव्रत । ग्राम, नगर आदि में दूसरों की गिरी हुई गुमी हुई या भूलकर रखी हुई वस्तु को ग्रहण नहीं करना । इस अणुव्रत के पांच अतीचार होते हैं― 1. स्तेनप्रयोग-कृत, कारित और अनुमोदना से चोर को चोरी में प्रवृत करना । 2. तदाहृतादान― चोरी की वस्तुएँ खरीदना । 3. विरुद्धराज्यातिक्रम-राजकीय आज्ञा विरुद्ध क्रय-विक्रय करना । 4 हीनाधिकमानोन्मान-कम और अधिक नापना, तौलना । 5. प्रतिरूपकव्यवहार-कृत्रिम मिलावट कर दूसरों को ठगना । हरिवंशपुराण - 58.171-173 वीरवर्द्धमान चरित्र 18.42