रामदत्ता: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> मेरु गणधर के नौवें पूर्वभव का जीव-पोदनपुर के राजा पूर्णचंद्र और रानी हिरण्यवती की पुत्री । यह जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र मे सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन की रानी थी । इसका मंत्री श्रीभूति सत्यघोष नाम से प्रसिद्ध था । पद्मखंडपुर के भद्रमित्र के धरोहर के रूप में रखे गये रत्न उसे देने से मंत्री के मुकर जाने पर इसने उसके साथ | <div class="HindiText"> <p class="HindiText"> मेरु गणधर के नौवें पूर्वभव का जीव-पोदनपुर के राजा पूर्णचंद्र और रानी हिरण्यवती की पुत्री । यह जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र मे सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन की रानी थी । इसका मंत्री श्रीभूति सत्यघोष नाम से प्रसिद्ध था । पद्मखंडपुर के भद्रमित्र के धरोहर के रूप में रखे गये रत्न उसे देने से मंत्री के मुकर जाने पर इसने उसके साथ जुआ खेला और जुएँ मे उसका यज्ञोपवीत तथा नामांकित अंगूठी जीत ली और अंगूठी अपनी निपुणमती धाय को देकर अपने चातुर्य से श्रीभूति मंत्री के घर से भद्रमित्र का रत्नों का पिटारा उसकी स्त्री के पास से अपने पास मँगवा लिया था । राजा ने भी अपने रत्न उस पिटारे में मिलाकर भद्रमित्र से अपने रत्न ले लेने के लिए जैसे ही कहा था कि उसने उस पिटारे से अपने रत्न ले लिए थे । इस प्रकार भद्रमित्र को न्याय दिलाने और अपराधी मंत्री को दंडित कराने में इसका अपूर्व योगदान रहा । भद्रमित्र मरकर स्नेह के कारण इसका ज्येष्ठ पुत्र सिंहचंद्र हुआ । पूर्णचंद्र इसका छोटा पुत्र था । इसके पति को मंत्री श्रीभूति के जीव अगंधन सर्प ने डसकर मार डाला था । पति के मर जाने पर इसके बड़े पुत्र सिंहचंद्र को राजपद और छोटे पुत्र पूर्णचंद्र को युवराज पद मिला । इसने पति के मरने के पश्चात् हिरण्यमति आर्यिका से संयम धारण किया । इसके संयमी हो जाने पर इसके बड़े पुत्र सिंहचंद्र ने भो अपने छोटे भाई पूर्णचंद्र को राज्य सौंपकर दीक्षा ले ली । अपने पुत्र को मुनि अवस्था में देखकर यह हर्षित हुई थी । इसने उनसे धर्म के तत्त्व को समझा था । अंत में यह पुत्र स्नेह से निदानपूर्वक मरकर महाशुक्र स्वर्ग के भास्कर विमान में देव हुई । <span class="GRef"> महापुराण 59. 146-177, 192-256, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_27#20|हरिवंशपुराण - 27.20-21]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_27#47|हरिवंशपुराण - 27.47-58]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
मेरु गणधर के नौवें पूर्वभव का जीव-पोदनपुर के राजा पूर्णचंद्र और रानी हिरण्यवती की पुत्री । यह जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र मे सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन की रानी थी । इसका मंत्री श्रीभूति सत्यघोष नाम से प्रसिद्ध था । पद्मखंडपुर के भद्रमित्र के धरोहर के रूप में रखे गये रत्न उसे देने से मंत्री के मुकर जाने पर इसने उसके साथ जुआ खेला और जुएँ मे उसका यज्ञोपवीत तथा नामांकित अंगूठी जीत ली और अंगूठी अपनी निपुणमती धाय को देकर अपने चातुर्य से श्रीभूति मंत्री के घर से भद्रमित्र का रत्नों का पिटारा उसकी स्त्री के पास से अपने पास मँगवा लिया था । राजा ने भी अपने रत्न उस पिटारे में मिलाकर भद्रमित्र से अपने रत्न ले लेने के लिए जैसे ही कहा था कि उसने उस पिटारे से अपने रत्न ले लिए थे । इस प्रकार भद्रमित्र को न्याय दिलाने और अपराधी मंत्री को दंडित कराने में इसका अपूर्व योगदान रहा । भद्रमित्र मरकर स्नेह के कारण इसका ज्येष्ठ पुत्र सिंहचंद्र हुआ । पूर्णचंद्र इसका छोटा पुत्र था । इसके पति को मंत्री श्रीभूति के जीव अगंधन सर्प ने डसकर मार डाला था । पति के मर जाने पर इसके बड़े पुत्र सिंहचंद्र को राजपद और छोटे पुत्र पूर्णचंद्र को युवराज पद मिला । इसने पति के मरने के पश्चात् हिरण्यमति आर्यिका से संयम धारण किया । इसके संयमी हो जाने पर इसके बड़े पुत्र सिंहचंद्र ने भो अपने छोटे भाई पूर्णचंद्र को राज्य सौंपकर दीक्षा ले ली । अपने पुत्र को मुनि अवस्था में देखकर यह हर्षित हुई थी । इसने उनसे धर्म के तत्त्व को समझा था । अंत में यह पुत्र स्नेह से निदानपूर्वक मरकर महाशुक्र स्वर्ग के भास्कर विमान में देव हुई । महापुराण 59. 146-177, 192-256, हरिवंशपुराण - 27.20-21,हरिवंशपुराण - 27.47-58