अष्ट प्रवचन माता: Difference between revisions
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<span class="GRef"> भगवती आराधना/1205 </span><span class="PrakritGatha">एदाओ अट्ठपवयणमादाओ णाणदंसणचरित्तं । रक्खंति सदा सुणिओ मादा पुत्तं व पयदाओ ।1205।</span> | <span class="GRef"> भगवती आराधना/1205 </span><span class="PrakritGatha">एदाओ अट्ठपवयणमादाओ णाणदंसणचरित्तं । रक्खंति सदा सुणिओ मादा पुत्तं व पयदाओ ।1205।</span> <span class="HindiText"> =ये अष्ट प्रवचनमाता मुनि के ज्ञान, दर्शन और चारित्र की सदा ऐसे रक्षा करती हैं जैसे कि पुत्र का हित करने में सावधान माता अपायों से उसको बचाती है ।1205। <span class="GRef">(मूलाचार/336)</span> <span class="GRef">( भगवती आराधना / विजयोदया टीका/1185/1171/5 )</span> ।<br /> | ||
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<p>प्रवचन सम्बन्धित विशेष जानकारी हेतु देखें [[ प्रवचन ]]।</p> | <p class="HindiText"> प्रवचन सम्बन्धित विशेष जानकारी हेतु देखें [[ प्रवचन ]]।</p> | ||
Latest revision as of 22:16, 17 November 2023
मूलाचार 297 प्रणिधाणजोगजुत्तो पंचसु समिदीसु तीसु गुत्तीसु । स चरित्ताचारो अट्ठविधो होइ णायव्वो ।297। =आठ प्रवचन माता से आठ भेद चारित्र के होते हैं - परिणाम के संयोग से पाँच समिति, तीन गुप्तियों में न्यायरूप प्रवृत्ति वह आठ भेद वाला चारित्राचार है ऐसा जानना ।297।
भगवती आराधना/1205 एदाओ अट्ठपवयणमादाओ णाणदंसणचरित्तं । रक्खंति सदा सुणिओ मादा पुत्तं व पयदाओ ।1205। =ये अष्ट प्रवचनमाता मुनि के ज्ञान, दर्शन और चारित्र की सदा ऐसे रक्षा करती हैं जैसे कि पुत्र का हित करने में सावधान माता अपायों से उसको बचाती है ।1205। (मूलाचार/336) ( भगवती आराधना / विजयोदया टीका/1185/1171/5 ) ।
प्रवचन सम्बन्धित विशेष जानकारी हेतु देखें प्रवचन ।