कुशील: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
(Imported from text file) |
||
(8 intermediate revisions by 5 users not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
< | | ||
== सिद्धांतकोष से == | |||
<li class="HindiText"><strong > शील के दस दोष </strong></span><br /> | |||
<span class="GRef"> दर्शनपाहुड़ टीका/9/9/4 </span><span class="SanskritText"> कास्ता: शीलविरोधना: स्त्रीसंसर्ग: सरसाहार: सुगंधसंस्कार: कोमलशयनासनं शरीरमंडनं गीतवादित्रश्रवणम् अर्थग्रहणं कुशीलसंसर्ग: राजसेवा रात्रिसंचरणम् इति दशशीलविराधना: ।</span> = | |||
<ol> | |||
<li> <span class="HindiText">स्त्री का संसर्ग, </span></li> | |||
<li class="HindiText"> स्वादिष्ट आहार,</li> | |||
<li class="HindiText"> सुगंधित पदार्थों से शरीर का संस्कार, </li> | |||
<li class="HindiText"> कोमल शय्या व आसन आदि पर सोना, बैठना, </li> | |||
<li class="HindiText"> अलंकारादि से शरीर का शृंगार, </li> | |||
<li class="HindiText"> गीत-वादित्र-श्रवण, </li> | |||
<li class="HindiText"> अधिक धन ग्रहण, </li> | |||
<li class="HindiText"> कुशीले व्यक्तियों की संगति, </li> | |||
<li class="HindiText"> राजा की सेवा, </li> | |||
<li class="HindiText"> रात्रि में इधर-उधर घूमना, ऐसे दस प्रकार से शील की विराधना होती है ।<br /> | |||
</li> | |||
</ol> | |||
[[Category:क]] | <span class="HindiText"> देखें [[ ब्रह्मचर्य ]]।</span> | ||
<noinclude> | |||
[[ कुशार्थ | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ कुशील संगति | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: क]] | |||
== पुराणकोष से == | |||
<span class="HindiText"> कषाय, विषय, आरंभ, और जिह्वा । इंद्रिय संबंधी छ: रसों में आसक्त साधु । महामोह का त्याग नहीं होने से ऐसे साधु ससार में भ्रमण करते रहते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 76.193, 196, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_60#58|हरिवंशपुराण - 60.58]] </span> | |||
<noinclude> | |||
[[ कुशार्थ | पूर्व पृष्ठ ]] | |||
[[ कुशील संगति | अगला पृष्ठ ]] | |||
</noinclude> | |||
[[Category: पुराण-कोष]] | |||
[[Category: क]] | |||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 14:41, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
दर्शनपाहुड़ टीका/9/9/4 कास्ता: शीलविरोधना: स्त्रीसंसर्ग: सरसाहार: सुगंधसंस्कार: कोमलशयनासनं शरीरमंडनं गीतवादित्रश्रवणम् अर्थग्रहणं कुशीलसंसर्ग: राजसेवा रात्रिसंचरणम् इति दशशीलविराधना: । =
- स्त्री का संसर्ग,
- स्वादिष्ट आहार,
- सुगंधित पदार्थों से शरीर का संस्कार,
- कोमल शय्या व आसन आदि पर सोना, बैठना,
- अलंकारादि से शरीर का शृंगार,
- गीत-वादित्र-श्रवण,
- अधिक धन ग्रहण,
- कुशीले व्यक्तियों की संगति,
- राजा की सेवा,
- रात्रि में इधर-उधर घूमना, ऐसे दस प्रकार से शील की विराधना होती है ।
देखें ब्रह्मचर्य ।
पुराणकोष से
कषाय, विषय, आरंभ, और जिह्वा । इंद्रिय संबंधी छ: रसों में आसक्त साधु । महामोह का त्याग नहीं होने से ऐसे साधु ससार में भ्रमण करते रहते हैं । महापुराण 76.193, 196, हरिवंशपुराण - 60.58